शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

हमें जो कहनी है वह बात अभी बाकी है

कल हमारे एक मित्र मिले कहने लगे यार आजकल आँदोलन का माहौल चल रहा है ,तुम्हारी वह कुत्ते वाली कविता याद आ रही है । हमें याद आया 1984 में जबलपुर के कविता रचना शिविर में , किसान और मजदूरों के आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में वह कविता लिखी थी । और मंच पर बहुत जोश से उस कविता का पाठ भी करते थे । डॉ.कमला प्रसाद को भी मेरी उम्र और इस कविता के तेवर की वज़ह से उस समय यह कविता अच्छी लगी थी । पुरानी ही सही आप भी पढ़ लीजिये  इसे ।


         हमारे हाथ अभी बाकी हैं

कल रात मेरी गली में एक कुत्ता रोया था
और उस वक़्त आशंकाओं से त्रस्त कोई नहीं सोया था
डर के कारण सबके चेहरे पीत थे
किसी अज्ञात आशंका से सब भयभीत थे
सब अपने अपने हाथों में लेकर खड़े थे अन्धविश्वास के पत्थर
कुत्ते को मारने के लिये तत्पर
किसीने नहीं सोचा
कुत्ता क्यों रोता है
1984 में एक आन्दोलन में झंडा उठाए कवि 
उसे भी भूख लगती है
उसे भी दर्द होता है

हम भी शायद कुत्ते हो गये हैं
इसलिये खड़े हैं उनके दरवाजों पर
जो नहीं समझ सकते
हमारे रूदन के पीछे छिपा दर्द
उनके हाथों में हैं वे पत्थर
जो कल हमने तोड़े थे चट्टानों से
बांध बनवाने के लिये
या अपने गाँव तक जाने वाली
सड़क पर बिछाने के लिये
उनका उपयोग करना चाहते हैं वे
कुचलने के लिये हमारी ज़ुबान
चूर करने के लिये
हमारे स्वप्न और अरमान
वे जानते हैं
हमें जो कहनी है
वह बात अभी बाकी है

ज़ुबाने कुचले जाने से नहीं डरेंगे हम
हमारे मुँह में दाँत अभी बाकी हैं

लेकिन हम आदमी हैं कुत्ते नहीं
आओ उठे दौड़ें
और छीन लें उनके हाथों से वे पत्थर
हमारे हाथ अभी बाकी हैं 

हमारे हाथ अभी बाकी हैं । 

   - शरद कोकास 




9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! ओजस्वी कविता ।
    ज़वानी में जोश तो रहता ही है ।
    अन्ना के साथ भी युवा शक्ति ने चमत्कार दिखा दिया है ।

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  2. इन्हीं हाथों की ताकत को आज़माने के दिन आए हैं॥

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  3. हमारे हाथ अभी बाकी है , बात अभी बाकी है ...
    प्रेरक कविता ...
    आभार !

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  4. sharad ji bahut hi sundar aur saarthak rachna hai

    कुत्ते को मारने के लिये तत्पर
    किसीने नहीं सोचा
    कुत्ता क्यों रोता है
    उसे भी भूख लगती है
    उसे भी दर्द होता है

    kya bat hai !
    waise shayad we log hamen janvar bhi nahin samajhate hain

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  5. ज़ुबाने कुचले जाने से नहीं डरेंगे हम
    हमारे मुँह में दाँत अभी बाकी हैं
    लेकिन हम आदमी हैं कुत्ते नहीं
    आओ उठे दौड़ें
    और छीन लें उनके हाथों से वे पत्थर
    हमारे हाथ अभी बाकी हैं शरद जी कोकास आज के सन्दर्भ में यह रचना कितनी मौजू है ....जोश पूर्ण है इसका कयास लगाना अनुमेय ही रहेगा ....आभार इसे सांझा करने के लिए .....
    हमारे हाथ अभी बाकी हैं । ... .जय अन्ना !जय श्री अन्ना !आभार बेहतरीन पोस्ट के लिए आपकी ब्लोगियाई आवाजाही के लिए;
    बृहस्पतिवार, १८ अगस्त २०११
    उनके एहंकार के गुब्बारे जनता के आकाश में ऊंचाई पकड़ते ही फट गए ...
    http://veerubhai1947.blogspot.com/
    Friday, August 19, 2011
    संसद में चेहरा बनके आओ माइक बनके नहीं .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  6. सशक्त और सार्थक संदेश के लिए आभार...
    सादर,
    डोरोथी.

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