शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011

चैत्र नवरात्रि कविता उत्सव 2011 - पंचम दिवस - श्वेता कोकाश की कविता


 
इस चैत्र नवरात्रि कविता उत्सव में आप सभी पाठकों का प्रेम देखकर अभिभूत हूँ । मैं आभारी हूँ नये पुराने सभी पाठकों का । इसी क्रम में आज पाँचवें दिन प्रस्तुत है मुम्बई की कवयित्री श्वेता की यह कविता । 
श्वेता कोकाश लगभग अचर्चित कवयित्री हैं । उन्हे इस बात का गुमान भी नहीं है कि वे कविताएं लिखती हैं , लेकिन समाज की नब्ज़ वे पहचानती हैं और यदा कदा अपने विचारों के माध्यम से उन्हे प्रकट करती हैं । इसका प्रमाण है उनका ब्लॉग MY THOUGHTS , MY WORLD जिस पर यदा कदा वे अपने विचारों के साथ साथ कवितायें भी प्रस्तुत  करती हैं । श्वेता कोकाश सम्प्रति Dr Antonio D Silva Technical Junior College Mumbai  में गणित की व्याख्याता हैं ।
श्वेता ने बहुत कम कवितायें लिखी है यद्यपि वे बचपन से कवितायें लिख रही हैं और इस बात का उन्हें दुख है कि  उनकी बहुत सी कवितायें किसी अन्य की लापरवाही से गुम हो गईं । अन्य सामाजिक विषयों पर लिखी कविताओं की बनिस्बत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ उनकी दो प्रेम कवितायें जो उन्होंने अपने प्रेमी व पति आशीष के लिये लिखी हैं ।( यह उल्लेख इसलिये कि श्वेता ने मुझसे कहा था “ भैया , यह कविता आशीष के लिये लिखी थी , एक दिन जब वह बेहद उदास था )  मूल अंग्रेज़ी कविता का हिन्दी अनुवाद किया है कवि शरद कोकास ने और निस्सन्देह सिद्धेश्वर जी का चयन तो है ही जिनका कहना है कि श्वेता की मूल अंग्रेज़ी कविता में भाषा की एक नई रवानी है ।   

श्वेता कोकाश 
एक दिन जब वह बहुत उदास था 

मत उदास हो मेरी जान

मेरी आँखें तुम्हारा दुख पहचानती हैं
ऐसा दुख जिसे सुनने के लिये
इस दुनिया के कान बहरे हो गये हैं
बिखर गये हैं तुम्हारे स्वप्न और
जकडे गये हैं किसी भय के डरावने पंजों में

मै जानती हूँ
खुशियों ने तुम्हे छोड़ दिया है
दुखो के रेगिस्तान में भटकने के लिये अकेले
लेकिन तंज़ के तेज़ तूफानों के बावज़ूद
मै खड़ी ही तुम्हारे साथ तुम्हारा हमसाया बनकर

मै जानती हूँ
मैं बदल नहीं सकती तुम्हारी नियति
लेकिन मै हूं सदा तुम्हारे साथ
धैर्य की अडिग चट्टान बनकर
श्वेता , आशीष व शरद कोकास 
तुम्हारी उपेक्षा के झंझावातों में


आओ मुझसे अपने दुख बाँटो
मेरा प्यार हमेशा उपस्थित है उन राहों में
जहाँ छोड़कर चले गये हैं सब तुम्हे
मै एक अकेली सुन रही हूँ तुम्हारा दर्द

दुनिया की भीड़ में जहाँ तुम
सिर्फ एक चेहरा हो दुनिया के लिये
पूरी दुनिया हो तुम मेरी इस कायनात में
इतने कम शब्दों में और क्या बयान करूँ
कि मैं तुम्हारी हूँ सदा के लिये  



      2.            नियति

यह महज नियति नहीं थी
जिस तरह हम मिले
जिस तरह पल्लवित हुई हमारी दोस्ती
जिस तरह यह सम्बन्ध परवान चढ़े

यह महज नियति नहीं थी
जिस तरह हमने एक दूजे का संग महसूस किया
जिस तरह बाँटे हमने अपने अपने दुख
अपने सपने और
ज़िन्दगी के आने वाले हसीन पल
जिस तरह हमने बाँटी छोटी छोटी खुशियाँ
और बड़ी बड़ी उपलब्धियाँ
यह महज नियति नहीं थी
कि कभी हम रूठे एक दूसरे से
अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त रहे
हमने पोछे अपने आँसू अपनी चिंतायें अपने भय
और हमारी उदासी ने एक दूसरे को उदास किया

यह महज नियति नहीं थी
महज संयोग भी नहीं  
शायद विधि का विधान था

जहाँ हमारी तुम्हारी दुनिया में
नियति के रूप में बहुत कुछ घटित होना है  
मैं धन्यवाद देना चाहती हूँ उसे
जिसने मेरी नियति तुम्हे बनाया है ।

                         - श्वेता कोकाश
  
मूल अंग्रेज़ी कविता - श्वेता कोकास 
हिन्दी अनुवाद - शरद कोकास