नवरात्रि के प्रथम दिवस रानी जयचंद्रन की कविता पर अनेक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई . मैं आभारी हूँ , सभी पाठकों का . साथ ही मैं सभी पुराने पाठकों को भी आवाज़ दे रहा हूँ .
आज प्रस्तुत है सुकृता पॉल कुमार की यह कविता जिसका अंग्रेजी से अनुवाद किया है सिद्धेश्वर सिंह ने .
सुकृता ( सुकृता पॉल कुमार ) कथा साहित्य की गंभीर अध्येता और अंग्रेजी साहित्य की प्राध्यापक हैं। वह चित्रकार , अनुवादक , संपादक तथा सामाजिक सरोकारों से सक्रिय जुड़ा़व रखने वाली कार्यकर्ता हैं। वह अमेरिका के आयोवा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम शामिल हो चुकी हैं और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की फेलो भी रह चुकी हैं। एक कवि के रूप में वह केवल सुकृता के नाम से जानी जाती हैं। दिल्ली निवासिनी हिमालय प्रेमी सुकृता जी का जन्म और पालन पोषण केन्या में हुआ है। पिछले कई दशकों से वह अपनी कविताओं के जरिए अपनी जड़ों की तलाश के क्रम में रत हैं। उनके चार कविता संग्रह Oscillations, Apurna, Folds of Silence और Without Margins प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत हैं उनके चौथे संग्रह में संकलित दो कवितायें :
सुकृता पॉल कुमार |
01 . नीरवता को तोड़ते हुए
शब्द झरते हैं
सुमुखि के मुख से
बारिश की तरह
रेगिस्तानों पर ।
*
अंतस में आड़ोलित
आँधियों और चक्रवातों के पश्चात
शब्द गिरते हैं
शिलाखंडों की तरह।
*
अटक गए हैं शब्द
जमी हुई
बर्फ़ की तरह
प्रेमियों के कंठ में।
*
विचारों में पिघलते हुए
मस्तिष्क में उतराते हुए
एकत्र हो रहे हैं शब्द
अनकहे वाक्यों में।
02. परिज्ञान
रोशनी के उस वृत्त के
ठीक मध्य में
उभर रहा है
अनुभवों की सरिता में
हाँफता -खीजता
सिद्धेश्वर सिंह |
मेरे जीवन का सच
इतना उजला
कि देख पाना मुमकिन नहीं मेरे वास्ते।
गड्ड मड्ड हो गए हैं सारे रंग
जिन्दगियाँ एक दूजे में सीझ रही हैं
उजला होता जा रहा है अधिक उज्ज्वल
और मैं
पहले से अधिक दृष्टिहीन।
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( कविता : सुकृता पॉल कुमार)
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )