शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

माँ के हाथों बने खाने का स्वाद ।

रश्मि जी ने अपने ब्लॉग 'अपनी उनकी सबकी बातें' पर जब कहा कि " काश रोहन के द्वारा पढ़ी गई कविता की पंक्तियाँ मुझे याद रह जातीं " तो मुझे अपने हॉस्टल के दिनों में लिखी कवितायें याद आ गईं…और पढ़ाई के दिनों की वह सारी मस्ती और परेशानियाँ भी । उन दिनों न मोबाइल हुआ करता था कि जब चाहे तब फ़ुनिया सकें, न पापा इतना पैसा भेजते थे कि जब चाहे जैसा चाहें खर्च करें फिर भी मज़ा तो आता ही था लेकिन कभी कभी बहुत होमसिक फील होता था और मेस का खाना खाते हुए तो बरबस घर के खाने की याद आ जाती थी …| कुछ ऐसे ही क्षणों में उपजी थी यह कवितायें .......


हॉस्टल –एक - मस्ती

दोस्तों से बहस की
फिल्म फैशन राजनीति पर
पढ़ाई की चिंता को धुएँ में उड़ाया
शिक्षकों की नकल उतारी
नाटकों के डायलॉग याद किये
बाज़ार में उधम मचाया
छेड़छाड़ की
भीड़ से घिरा रहा
कवितायें सुनाईं
तालियाँ बटोरीं

अकेले होते ही
घर बहुत याद आया ।

हॉस्टल – दो  – रैगिंग

वे शासक होते हैं
हम शासित
उनका काम हुक्म देना
हमारा काम
हुक्म पर अमल करना
तमाम ऊलजलूल सवाल
बेहूदा हरकतें
बेसुरे गीत
अश्लील चुटकुले
शामिल रहते हैं
सिलेबस में

साल भर बड़े उम्र में
हमे सिखाते हैं दुनियादारी
हमसे बदला लेते है
खुद पर हुए ज़ुल्मों का
उस पर तुर्रा यह
कि परम्परा का निर्वाह करते हैं

कुछ महीनों बाद
उनकी बाँहों में बाँहे डाले
हम इंतज़ार करते हैं
आनेवाली बाँहों का । 


हॉस्टल - तीन – घर की याद 

कोई खत नहीं आता है
नहीं आता कोई सन्देश
घर जैसे खाने के लिये
घर से दूर
किसी परिवार में
शाम बिताने का मोह होता है

माँ की हिदायतें
पिता की डाँट
भाई बहनों से लडाई
सब याद आता है

दुनिया के
हर हॉस्टल के
हर कमरे में
फैल जाती है
घर की याद ।

हॉस्टल - चार  –मेस
 
पकी पकाई रोटी के लिये भी
इंतज़ार करना
दुखदाई होता है
मेस में
मेज़ तबला बन जाती है
थाली डफली
गिलास ढोलक
खाने की प्रतीक्षा में
एकल गान नहीं
कोरस होता है

पूरा होता है
पेट भरने का दस्तूर

कमरे में लौटते हुए
जुबान पर आता है
माँ के हाथों बने
खाने का स्वाद । 

                      
( पहला चित्र गूगल से साभार ,दूसरा रीजनल कॉलेज भोपाल ,जहाँ मैं पढ़ता था , तीसरा हॉस्टेल विद्या निकेतन का और चौथा हॉस्टेल की बगल में बनी काका की झुग्गी ,हमारा वक्त -बेवक्त का सहारा... और सहपाठियों के साथ यह अंतिम फोटो इसमें मुझे आप आसानी से पहचान सकते हैं  ज़रा क्लिक करके फोटो बड़ा कीजिये  बस जान जायेंगे --   शरद कोकास  )
पुनश्च : 8 अगस्त को माँ की पुण्यतिथि है ..उनके लिये कुछ कवितायें लिखी थीं चाहें तो आप यहाँ देख सकते हैं ..।