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माफ कीजियेगा ..यह सारे सुविधाभोगी जीवन के बिम्ब हैं ।.लेकिन उन करोड़ों लोगों का क्या जिन्हे कड़कड़ाती ठंड में भी यह सब नसीब ही नहीं है । अभी उस दिन एक दोस्त ने कहा कि उसे ठंड अच्छी नहीं लगती ..सुबह सुबह अखबार में ठंड से मरने वालों की संख्या देखकर वह काँप जाता है ।
लेकिन कोई तो है ..जो इस भयानक ठंड से लड़ने के लिये तैयार बैठा है ..वह मेरे देश का आम आदमी है जिसे उसका दुश्मन नज़र तो आ रहा है ऐसा दुश्मन जिसके चेहरे पर शोषक की एक ठंडी मुस्कान है ..लेकिन इस ग़रीब आदमी के पास उसका मुकाबला करने के लिये कुछ नहीं है ..कुछ है तो बस दिमाग़ में विद्रोह की एक आग और समूह की ताकत .. लीजिये ..कविता पढ़िये ..
मैं नहीं गया कभी कश्मीर
न मसूरी न नैनीताल
दिल्ली क्या
भोपाल तक नहीं गया मैं
नहीं देखे कभी
तापमान के चार्ट
टी.वी.पर नहीं देखा
किस साल कितने लोग
ठन्ड से मरे
शहर से आये बाबू से
नहीं पूछा मैने
तुम्हारे उधर ठंड कैसी है
नहीं हासिल हुए मुझे
शाल स्वेटर दस्ताने और मफलर
मुझे नहीं पता
ठंड से बचने के लिये
लोग क्या क्या करते हैं
ज्यों ज्यों बढ़ी ठंड
मैने इकठ्ठा की लकड़ियाँ
और.....
पैदा की आग ।
- शरद कोकास
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)