तफरीह
चांद की आसमान में
ज़मीन पर हमारी
बैठी थी वह
बैठी थी वह
दुपहिये की पिछली सीट पर
बेनकाब था चांद आसमान में
यहाँ थी मुखौटों की भीड़
मुश्किल था असल चेहरा पहचानना
मैने कहा चांद को देखो
हमारे साथ चल रहा है
उसने कहा
तुम सड़क पर निगाह रखो
उसने कहा
तुम सड़क पर निगाह रखो
तुम्हारा क्या मुझे तो जीना है
मै नहीं देख पाया
उसकी निगाहें
चांद पर थी या नहीं
वह भी कहाँ देख पाई
मेरी आँखों के जल में
झिलमिलाता हुआ चांद ।
- शरद कोकास
(चित्र में दुर्घटनाओं के लिये कुख्यात भिलाई की एक व्यस्त सड़क )