11 अक्तूबर – नवरात्र कविता उत्सव –चौथा दिन – मराठी कवयित्री ज्योती लांजेवार
कल प्रस्तुत असमिया कवयित्री निर्मला प्रभा बोरदोलोई की कविता के पाठकों के रूप में फिर कुछ नये लोगों का आगमन हुआ । हम उन सभी का स्वागत करते हैं । डॉ.नूतन – नीति ने कहा इच्छा अंतस मन बेहद अच्छी लगी । शाहिद मिर्ज़ा ने कहा कि दोनों कवितायें मर्मस्पर्शी हैं । डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक एवं उपेन्द्र जी ने मूल कविता का भाव हूबहू कविता में उतारने के लिए अनुवादक सिद्धेश्वर जी की प्रशंसा की । संगीता स्वरूप ने इन्हे अतीत से जुड़ती भविष्य की कविता निरूपित किया । देवेन्द्र पाण्डेय ,राज भाटिया , काजल कुमार और कुसुम कुसुमेश जी को कवितायें अच्छी लगीं । राजेश उत्साही ने अपनी विस्तृत टिप्पणी में कहा कि ब्लॉग में अच्छे पाठक कैसे तैयार हों इस दिशा में सोचना ज़रूरी है । महेन्द्र वर्मा ने कहा कि सिद्धेश्वर जी ठीक कहते हैं अच्छी कविता ठहराव चाहती है । दिगम्बर नासवा ने इन्हे कम शब्दों में गहरी वेदना व्यक्त करने वाली कवितायें कहा ।वन्दना जी ने इन्हे स्त्री मन की अंतर्वेदना व्यक्त करने वाली कवितायें कहा और इस पोस्ट को चर्चा मंच में शमिल करने की सूचना दी । वन्दना अवस्थी दुबे ने कविताओं के परिप्रेक्ष्य में कहा कि ऐसा हमारे पास क्या है जिसे हम यादों के रूप में सहेज जायें ।डॉ. टी एस.दराल ने दुख को मर्मस्पर्शी तथा इच्छा को सचेत करती प्रेरणात्मक रचना बताया ।डॉ. मोनिका शर्मा , उस्ताद जी और ZEAL को यह कवितायें अच्छी लगीं ।प्रज्ञा पाण्डेय ने इसे मन को मथने वाली कविता कहा और सुशीला पुरी ने कहा कि कवयित्री की इच्छा समूचे विश्व से जोड़ती है ।बहुत दिनो बाद पधारी आशा जोगलेकर ने कहा सिद्धेश्वर जी ने कविता की आत्मा अक्षुण्ण रखी है। रावेन्द्र कुमार संजय भास्कर व अजय कुमार ने भी अपनी उप्स्थिति दर्ज कराई ।
आप सभी पाठकों को अपनी और सिद्धेश्वर जी की ओर से धन्यवाद देते हुए आज 11 अक्तूबर नवरात्र के चौथे दिन प्रस्तुत है मराठी कवयित्री ज्योती लांजेवार की यह दलित प्रेम कविता । इसे मैंने मराठी के प्रसिद्ध दलित कवि शरण कुमार लिंबाळे द्वारा सम्पादित कविता संग्रह “ दलित प्रेम कविता “ से लिया है । शरण कुमार कहते हैं कि मूल मराठी प्रेम कविता प्रिय के वर्णन ,स्मृति ,विरह व आत्मिक प्रेम के बिम्बों से भरपूर है लेकिन दलित प्रेम कविता में प्रेम तो है ही साथ ही इसमें सामाजिक विषमता के साथ साथ प्रेमी व प्रेमिका का जीवन संघर्ष तथा जाति के आधार पर सदियों से उपेक्षित उनकी वेदना भी उपस्थित है । इसीलिये इस कविता में प्रेमी बागीचे में , या समुद्र के किनारे या एक दूजे की बाहों में दिखाई देने की अपेक्षा आन्दोलन व संघर्ष के कार्यकर्ता के रूप में दिखाई देते हैं । प्रेम में बहाए जाने वाले आँसुओं और आहों के लिये इस कविता में कोई जगह नहीं है । इस कविता में स्त्री की वेदना भी व्यक्तिगत वेदना नहीं वह पूरे दलित समाज , और स्त्री समाज की वेदना है ।
इस कविता के आस्वाद के लिए दलित आंदोलन के बारे में जानना ज़रूरी तो नहीं है लेकिन यह कविता इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हम उत्पीड़ितों का इतिहास भी जाने शायद तभी हम रोम के गुलाम स्पार्टकस और वेरोनिया के प्रेम को समझ पायेंगे और पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविताओं के अर्थ ग्रहण कर सकेंगे ।
इस मूल मराठी कविता का हिन्दी अनुवाद किया है शरद कोकास ने ।
वेदना का प्रेम
यह निर्बन्ध नटखट पवन
मुझसे कुछ कहे बगैर
यदि तुम्हारी खिड़की तक आया
उसे भेज देना सीधे
उफनते सागर की ओर
मुझे पता है यह पवन
हर फूल से चुगली करने वाला
सुखलोलुप सिरफिरा और भ्रमित है
मगर यहीं कहीं
अगर आती है कोई व्यथित दृष्टि
तुम्हारी ओर
तो उसे मत भेज देना
केतकी के सुगन्धित वन में
भीतर बसा लेना उसे
एक क्षण के लिये ही सही
उसे ज़रूरत होगी
तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।
- ज्योती लांजेवार
मैंने पहली बार अपने किसी अनुवाद को ब्लॉग पर प्रस्तुत किया है सो आप की प्रतिक्रिया इस पर भी चाहूँगा । आप सभी से अनुरोध है कि कल पुन: इस ब्लॉग पर पधारें और आज की अपनी टिप्पणियों के सार संक्षेप के साथ एक और भारतीय भाषा की कवयित्री की कविता का आनन्द लें । - शरद कोकास