मुम्बई केवल औद्योगिक नगरी नहीं है । यहाँ के लोगों की व्यस्तता देख कर ऐसा लगता है कि शायद इन लोगों के जीवन में धर्म-कर्म या पूजा -पाठ के लिये समय ही नहीं होगा । लेकिन ऐसा नहीं है ।मैने जब महालक्ष्मी मन्दिर ,सिद्धि विनायक और हाजी अली में लोगों की भीड़ देखी तो मेरा यह भ्रम टूट गया । और सबसे अधिक मज़ा तो तब आया जब लोकल ट्रेन में एक भजन करने वाला समूह सवार हुआ । एक व्यक्ति ने एक ब्रीफ केस खोला उसके भीतर एक देवता की तस्वीर थी वह उसे खोलकर खड़ा हो गया और बाकि लोग तालियाँ बजा बजा कर भजन करने लगे । जैसे ही उनका गंतव्य स्थल आया उस व्यक्ति ने ब्रीफकेस बन्द किया और सभी लोग स्टेशन पर उतर गये । है न समय का सदुपयोग । वैसे भी आप लोग मुम्बई के नवरात्र और गणेशोत्सव के विषय में जानते ही होंगे । फिलहाल मुम्बई के इन तीन धार्मिक स्थलों पर मेरी यह तीन कवितायें ..अब इसमें आपको धर्म या पूजा पाठ नज़र न आये तो मुझे दोष मत दीजियेगा ..कवि की नज़र है .. क्या देखता है पता नहीं ..क्या लिखता है पता नहीं ?
- सिटी पोयम्स मुम्बई – सिद्धी विनायक
जो रास्ता पहले आम आदमी के कदम पहचानता था
वह अब सिर्फ भक्तों के कदमों की आहट सुनता है
अब वहाँ से नहीं गुजरता
कोई भी ऐसा शख़्स
जो नहीं डरता हो
उस दुनिया के
और इस दुनिया के भगवानों से ।
- सिटी पोयम्स मुम्बई – महालक्ष्मी
कुछ इस तरह लगी तुम्हारी हँसीं
अगरबत्ती के धुयें सा
प्यार फैल गया इर्द गिर्द
जिसके बाहर कुछ नहीं दिखाई देता था
न दुनिया के ग़म
न ज़िन्दगी की परेशानियाँ
गर्भगृह के बाहर
स्त्री पुरुषों की अलग अलग पंक्तियों में खडे थे हम
एक दूसरे की ओर देखते
मुझे नहीं पता
देवी की निगाह मुझ पर थी
या तुम पर ।
मैने मज़ारों से कभी नहीं माँगी दुआयें
लेकिन तुम्हे दुआ माँगते देख मुझे अच्छा लगा
इसलिये कि मुझे पता था
माँगी हुई उन दुआओं में
मैं कहीं न कहीं शामिल ज़रूर था ।
-- शरद कोकास
( चित्र गूगल से साभार )