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अड़तालीस साल का आदमी
अपनी सबसे छोटी लड़की के हाथ से
पानी का गिलास लेते हुए
और अपनी सबसे बड़ी लड़की की चिंता में डूब जाता है
नाइट लैम्प की नीली रोशनी में
वह देखता है सोई हुई बयालीस की पत्नी की तरफ
जैसे तमाम किए- अनकिए की क्षमा माँगता है
नौकरी के शेष नौ - दस साल
उसे चिड़चिड़ा और जल्दबाज़ बनाते हैं
किसी अदृश्य की प्रत्यक्ष घबराहट में घिरा हुआ वह
भूल जाता है अपने विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ
अड़तालीस का आदमी
घूम- फिर कर घुसता है नाते - बिरादरी में
मिलता है उन्ही कन्दराओं उन्हीं सुरंगों में
जिनमें से एक लम्बे युद्ध के बाद
वह बमुश्किल आया था बाहर
इस तरह अड़तालीस का न होना चुनौती है एक
जिसे बार - बार भूल जाता है
अड़तालीस साल का आदमी ।
-- कुमार अम्बुज