रंगकर्म बहुत ही कठिन काम है , खासकर छोटे शहर में तो यह और भी कठिन । फिर भी बहुत से ऐसे रंगकर्मी हैं जो इसे जारी रखे हैं । हमारे शहर में भी ऐसी कुछ संस्थायें हैं जो नुक्कड़ नाटक से लेकर मंच तक लगातार सक्रिय हैं । हम लोग जब भी मिलते हैं कई तरह का रोना रोते हैं , जैसे आजकल कलाकार नहीं मिल रहे हैं , फिल्मों की ओर उनका रुझान बढ़ रहा है , जिसे देखो मुम्बई की टिकट कटा रहा है , आदि आदि । लेकिन क्या करें ,सब को रोजी- रोटी की ज़रूरत है , सबकी अपनी महत्वाकाँक्षा है । लाख परेशानियाँ आती हैं फिर भी नाटक है कि बन्द नहीं होता ... बस ऐसी ही कुछ परेशानियाँ , लंतरानिया , और यार दोस्तों की बातों को गूँथ दिया है कविताओं में , आप भी पढ़िये ....
रंगमंच – एक
रंगकर्मियों की शिकायत थी
नाटक नहीं लिखे जा रहे आजकल
निर्देशकों का कहना था
कलाकार जुटाना
अब पहले से ज़्यादा मुश्किल काम है
समीक्षकों के लिये
लगातार गिरता जा रहा था
कला का स्तर
प्रेस रिपोर्टर
हमेशा की तरह
जुटे थे काम में
इन बातों से बेखबर
कलाप्रेमियों को तसल्ली थी
चलो कुछ तो हो रहा है शहर में
चलो कुछ तो सुधर रहा है शहर ।
रंगमंच - दो
उसका नाटक हिट हुआ
उसने रेडियो स्टेशन का पता पूछा
उसका नाटक हिट हुआ
उसने दूरदर्शन पर पहचान बढ़ाई
उसका नाटक हिट हुआ
उसने बम्बई की टिकट कटा ली
लौटकर आया बरसों बाद
दोस्तों को याद दिलाई
फलाँ सीरियल में
फलाँ रोल था उसका
दोस्तों ने याद दिलाई
वो दिन भी क्या दिन थे
जब तुम्हारा नाटक हिट होने पर
कई कई दिनो तक
तुम ही तुम होते थे बातों में ।
रंगमंच – तीन
कुछ ने बजाई तालियाँ
कुछ ने कसे फिकरे
पर्दा उठा पर्दा गिरा
कुछ ने की तारीफ
कुछ ने की बुराई
पर्दा उठा पर्दा गिरा
कुछ ने गिनाये दोष
कुछ ने दिये सुझाव
पर्दा उठा पर्दा गिरा
कुछ ने छापी प्रशंसा
कुछ ने छापी आलोचना
पर्दा उठा पर्दा गिरा
कुछ ने की वाह
कुछ ने भरी आह
पर्दा उठा पर्दा गिरा
कुछ ने कहा बन्द करो
कुछ ने कहा जारी रखो
पर्दा उठा पर्दा उठा ।
--- शरद कोकास
( नाटकों के चित्र , मेरे मित्र व दुर्ग के प्रसिद्ध रंगकर्मी बालकृष्ण अय्यर के हिन्दी ब्लॉग माय एक्स्प्रेशन से साभार )