नवरात्र अंतिम दिन
प्रथम दिन से लेकर अब तक इन कवयित्रियों को आपने पढ़ा - प्रथम दिन से लेकर आपने अब तक फातिमा नावूत , विस्वावा शिम्बोर्स्का, अन्ना अख़्मातोवा .गाब्रीएला मिस्त्राल और अज़रा अब्बास , दून्या मिख़ाइल और शीमा काल्बासी और ग्राज़्यना क्रोस्तोवस्का की कवितायें पढ़ीं ।
प्रथम दिन से लेकर अब तक इन पाठकों की प्रतिक्रियाएँ आपने पढ़ीं - इन कविताओं पर जो बातचीत हुई उसमे अपनी सहभागिता दर्ज की अशोक कुमार पाण्डेय ने ,शिरीष कुमार मौर्य ने ,लवली कुमारी ,हरि शर्मा ,पारुल ,राज भाटिया , सुमन , डॉ.टी.एस.दराल , हर्षिता, प्रज्ञा पाण्डेय ,मयंक , हरकीरत “हीर” , के.के.यादव , खुशदीप सहगल , संजय भास्कर ,जे. के. अवधिया , अरविन्द मिश्रा , गिरीश पंकज ., सुशीला पुरी , शोभना चौरे , रश्मि रविजा , रश्मि प्रभा , बबली , वाणी गीत , वन्दना , रचना दीक्षित ,रानी विशाल ,संगीता स्वरूप , सुशील कुमार छौक्कर देवेन्द्र नाथ शर्मा , गिरिजेश राव , समीर लाल , एम.वर्मा ,कुलवंत हैप्पी ,काजल कुमार ,मुनीश ,कृष्ण मुरारी प्रसाद,अपूर्व ,रावेन्द्र कुमार रवि, पंकज उपाध्याय,विनोद कुमार पाण्डेय ,अलबेला खत्री , चन्दन कुमार झा , डॉ.रूपचन्द शास्त्री “ मयंक “,अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, रजनीश परिहार अविनाश वाचस्पति , सिंग एस.डी एम ,ललित शर्मा और अम्बरीश अम्बुज ने । आप सभी के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ । जिन लोगों ने फोन और ईमेल के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की उनका भी मैं आभारी हूँ । जिन लोगों ने इसे पढ़ा और प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाये उन्हे भी मैं धन्यवाद देता हूँ ।
प्रथम दिन से लेकर कल तक प्रस्तुत इन कविताओं के पश्चात आज इस श्रंखला की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत कर रहा हूँ हालीना पोस्वियातोव्स्का की दो कवितायें इन कविताओं का चयन एवं बहुत ही सुन्दर अनुवाद किया है कबाड़खाना ब्लॉग के श्री अशोक पाण्डेय ने । अशोक जी के अनुवाद आप पहले भी पढ़ चुके हैं ।
कवयित्री का परिचय पोलैंड की रहने वाली हालीना (1934- 1967 )को बचपन में टी.बी. हो गई थी । वह स्कूल नहीं जा सकी । माँ के साथ टीबी सेनिटिरियम के चक्कर लगाते हुए उसकी मुलाकात अडोल्फ नामक एक युवा फिल्म निर्देशक से हुई । अडोल्फ को भी टी बी थी । दोनो ने विवाह कर लिया परंतु अडोल्फ की मृत्यु हो गई । हालीना कवितायें लिखने लगी थी । लेकिन उसका स्वास्थ्य इस कदर बिगड़ा के चिकित्सकों ने उसे अमेरिका ले जाने की सलाह दी ।उसके पास इलाज़ के लिये पैसा नहीं था । पोलैंड के महाकवि चेस्वाव मिवोश और ताद्यूश रोज़ेविच के प्रयासों से उसका इलाज का खर्च निकला ।अमेरिका मे पहला ऑपरेशन सफल रहा । वह पोलैंड विश्वविद्यालय मे दर्शन शास्त्र भी पढ़ाने लगी लेकिन 1967 में दूसरे ऑपरेशन के दौरान 33 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई ।
तब तक उसके तीन कविता संग्रह आ चुके थे । 1968 में चौथा आया । हालीना ने प्रेम और और ऐन्द्रिकता को अपना विषय बनाया था उसे भान था कि कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है ।उसकी कविता में प्रेम की उथल-पुथल के साथ मृत्यु के सामंजस्य का विकट ठहराव देखने को मिलता है ।
- 1 . मेरी मृत्युएं
कोई कितनी दफ़ा मर सकता है प्रेम के कारण
पहली दफ़ा वह धरती का कड़ा स्वाद थी
कड़वा फूल
जलता हुआ सुर्ख़ कार्नेशन
दूसरी दफ़ा बस ख़ालीपन का स्वाद
सफ़ेद स्वाद
ठण्डकभरी हवा
खड़खड़ाते जाते पहियों की अनुगूंज
तीसरी दफ़ा, चौथी दफ़ा, पांचवीं दफ़ा
पहली दफ़ा वह धरती का कड़ा स्वाद थी
कड़वा फूल
जलता हुआ सुर्ख़ कार्नेशन
दूसरी दफ़ा बस ख़ालीपन का स्वाद
सफ़ेद स्वाद
ठण्डकभरी हवा
खड़खड़ाते जाते पहियों की अनुगूंज
तीसरी दफ़ा, चौथी दफ़ा, पांचवीं दफ़ा
मेरी मृत्युएं कम अतिशयोक्त थीं
अधिक नियमबद्ध
कमरे की चार औंधी दीवारें
और तुम्हारी आकृति मेरे ऊपर
2 . स्मृति पत्र
अगर तुम मर जाओगे
तो मैं नहीं पहनूंगी हल्की बैंगनी पोशाक
फुसफुसाती हवाओं से भरे रिबनों से बंधी
अधिक नियमबद्ध
कमरे की चार औंधी दीवारें
और तुम्हारी आकृति मेरे ऊपर
2 . स्मृति पत्र
अगर तुम मर जाओगे
तो मैं नहीं पहनूंगी हल्की बैंगनी पोशाक
फुसफुसाती हवाओं से भरे रिबनों से बंधी
रंगीन कोई भी चीज़ नहीं
कुछ भी नहीं
घोड़ागाड़ी पहुंच जाएगी - पहुंचेगी ही
घोड़ागाड़ी चली जाएगी - जाएगी ही
मैं खिड़की से लगी खड़ी रहूंगी - देखती रहूंगी
कुछ भी नहीं
घोड़ागाड़ी पहुंच जाएगी - पहुंचेगी ही
घोड़ागाड़ी चली जाएगी - जाएगी ही
मैं खिड़की से लगी खड़ी रहूंगी - देखती रहूंगी
हाथ हिलाऊंगी
रूमाल लहराऊंगी
उस खिड़की पर खड़ी
अकेली कहूंगी :
"अलविदा"
और भीषण मई की
गर्मी में
गर्म घास पर लेट कर
मैं अपने हाथों से
छुऊंगी तुम्हारे बाल
अपने होठों से सहलाऊंगी
मधुमक्खियों के रोओं को
जिसका डंक उतना ही सुन्दर
जैसे तुम्हारी मुस्कान
जैसे गोधूलि का समय
उस समय वह
सोना-चांदी होगी
या शायद सुनहरी और सिर्फ़ लाल
जो ढिठाई से घास के कान में फुसफुसाती जाती है
प्रेम, प्रेम
वह उठने नहीं देगी मुझे
और ख़ुद चल देगी
मेरे अभिशप्त ख़ाली घर की ओर
मेरे अभिशप्त ख़ाली घर की ओर
हालीना पोस्वियातोव्स्का
नवरात्र में प्रस्तुत विदेशी कवयित्रियों की यह कविता श्रंखला आपको कैसी लगी ? ज़रूर बताइयेगा । इसश्रंखला की कविताओं को उपलब्ध करवाया श्री अशोक पाण्डेय , श्री सिद्धेश्वर . ने । इसके अलावा कुछ कवितायें मैने ज्ञानरंजन जी की पत्रिका पहल से भी लीं जिनके अनुवादक हैं श्री गीत चतुर्वेदी ,रजनीकांत शर्मा और सलीम अंसारी । आप सभी के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ - शरद कोकास
.