रविवार, अगस्त 23, 2009

मास्क पहने आदमी से मैने पूछा कैसा लग रहा है ?


उसने कहा दम घुटता है भाई । ऐसा लगता है कहीं से ताजी हवा मिल जाये । मैने कहा ,सचमुच हम लोग तो जाने कब से इस घुटन में साँस ले रहे हैं लेकिन चारों ओर फैली यह घुटन कम होने का नाम ही नहीं ले रही । गुलामी की घुटन से मुक्ति मिली तो आज़ादी में दम घुटने लगा ..जैसे तैसे साँस लेने की कोशिश की तो महंगाई,भृष्टाचार,आतंकवाद,उपनिवेशवाद,साम्प्रदायिकता बाज़ारवाद तरह तरह की घुटन ने घेर लिया । जीने की इस कोशिश में अपने आर्काइव से ढूंढ कर लाया हूँ घुटन पर अपनी यह विद्रोही कविता .. इस कामना के साथ कि हम सब साथ
मिल कर इस घुटन से लड़ें.. आपका शरद कोकास

घुटन
घुटन की लिजलिजी उंगलियों में
दम घोंट देने की शक्ति शेष है
बन्द हैं ताज़ी हवा के तमाम रास्ते
उमस भरे कमरे में लटका है
उदास हवा का एक पोर्ट्रेट

बताया जा रहा है इन दिनों
बहुत मुश्किल काम है
तेज़ हवाओं में साँस लेना
विज्ञान के गारे से
धर्म की ईटें जोड़कर
खड़ी की जा रही हैं चारदीवारियाँ
घुटन से मरने वालों के लिये
आबाद किये जा रहे हैं कब्रस्तान

नौजवानों को अफसोस है
अपने पैदा होने पर
माएँ खुद घोंट रही हैं
पैदा होने से पहले बेटियों का गला
बूढ़े ईर्ष्या कर रहे हैं
भीष्म को प्राप्त वरदान पर

इधर कसाव बढता जा रहा है
घुटन की उंगलियों का
छटपटा रहे हैं बुद्धिजीवी
छुपा रहे हैं शर्म के दाग
सुविधाओं के रंग-रोगन से
आसमान की ओर उठी
अनगिनत आँखों में
बादलों का कोई अक्स नहीं है

उपग्रहों के ज़रिये
आंखों व कानों तक
पहुंचाई जा रही है
घुटन दूर हो जाने की अफवाह
गूंज रहे हैं मंजीरों के साथ
मन्दिरों में
दुनियावी दुखों से मुक्ति के उपाय
इधर मौत की खबर को
आत्महत्या का रंग दिया जा रहा है

अब घुटन
दरारों और झरोखों से निकलकर
सारी दुनिया पर छाने की कोशिश में है
मै इस कोशिश के खिलाफ
दरवाज़ा तोड़कर बाहर निकलना चाहता हूँ
तेज़ हवा पर सवार धूल से
लडना चाहता हूँ
घुटन के हाथों मारे जाने से बेहतर है
ताज़ी हवा की खोज में
वास्कोडिगामा हो जाना ।

- शरद कोकास

(सभी चित्र गूगल से साभार)