रविवार, मई 31, 2009

तम्बाखू-एक नज़रिया यह भी

विश्व तम्बाखू निषेध दिवस पर कवि नसिर अहमद सिकन्द की कविता
"चुटकी भर" उनके कविता संग्रह "इस वक़्त मेरा कहा "से


तमाम वैधानिक चेतावनी के बावजूद
वह मुंह में
ओंठों के बीच दबी है
वह चुटकी भर है
पर मिर्च नहीं
हल्दी नहीं
नमक नहीं

पर नमक सा स्वाद है उसमें
इसके निर्माण की कला में
निपुण होता है इसका बनाने वाला

हर किसी को नहीं आता यह हुनर
हर कोई नहीं जानता
हथेली और अंगूठे का श्रम
वो देखो!
ठेका श्रमिकों की पूरी टोली
और एक साथी बना रहा इसे
अंगूठे से रगड़ता
हथेलियों की ताल से चूना झराता
अब बारी-बारी सब उठायेंगे
कोई नहीं लेगा ज्यादा
कोई नहीं मारेगा किसी का हक़
बस चुटकी भर
मुंह में
ओंठों के बीच दबायेंगे।