1988 में कवितायें कम लिखीं । तीन प्रेम कवितायें जो 1987 में लिखी थीं उन्हें फाइनल किया और उसके अलावा " नीन्द न आने की स्थिति में लिखी कुछ कवितायें " चलिये पहले यह तीन प्रेम कवितायें .. " झील से प्यार करते हुए "
झील से प्यार
करते हुए – एक
झील की ज़ुबान ऊग
आई है
झील ने मनाही दी
है अपने पास बैठने की
झील के मन में
है ढेर सारी नफरत
उन कंकरों के
प्रति
जो हलचल पैदा
करते हैं
उसकी ज़ाती
ज़िन्दगी में
झील की आँखें
होती तो देखती शायद
मेरे हाथों में कलम है कंकर नहीं
झील के कान ऊग
आये हैं
बातें सुनकर
पास से गुजरने
वाले
आदमकद जानवरों
की
मेरे और झील के
बीच उपजे
नाजायज प्रेम से
वे ईर्ष्या करते
होंगे
वे चाहते होंगे
कोई इल्ज़ाम मढना
झील के निर्मल जल पर
झील की सतह पर
जमी है
खामोशी की काई
झील नहीं जानती
मै उसमें झाँक
कर
अपना चेहरा
देखना चाहता हूँ
बादलों के कहकहे
मेरे भीतर जन्म
दे रहे हैं
एक नमकीन झील को
आश्चर्य नहीं
यदि मैं एक दिन
नमक के बड़े से पहाड़ में तब्दील हो
जाऊँ ।