सोमवार, अक्टूबर 12, 2009

पैसे से क्या क्या तुम यहाँ खरीदोगे ...?


सुबह देखा तो सारे अखबार विज्ञापनों से भरे हुए हैं । पुष्य नक्षत्र में दिनभर खरीदारी कीजिये ,सोना,चान्दी,हीरा,मूंगा,नीलम,ज्वेलरी,एलेक्ट्रोनिक सामान ,टीवी फ्रिज,कार,बाइक ,ज़मीन-ज़ायदाद। ऐसा कहा जा रहा है कि इस दिन यह सब खरीदने से घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी इसलिये लोग बिना ज़रूरत भी अनाप – शनाप गैरज़रूरी सामान खरीद रहे है । और कुछ इसलिये भी कि उन्हे ज़रूरत का अहसास दिलाया जा रहा है । अरे ..आपके  घर में यह नये तरह का टीवी नहीं है ? कैसे आधुनिक हैं आप ? अरे आप अभी तक पुराने किस्म की ज्वेलरी पहन रही हैं ,आपको शर्म नहीं आती ? क्या भाईसाहब अभी तक वही पुराना स्कूटर ? 
जिस देश में करोड़ों लोगों को ठीक से दो वक़्त की रोटी नहीं मिलती उस देश में उन्हे बताया जा रहा है फलाने ऑवन में खाना जल्दी पकता है इसलिये यह तो आपके यहाँ होना ही चाहिये । इसकी आपको सख़्त ज़रूरत है ।
ठीक है जिनकी क्षमता है वे खरीद सकते हैं और बाक़ी लोगों से कहा जा सकता है जो है उसीमें खुश रहो ,संतोष ही सबसे बड़ा धन है । हाँलाकि अब तो यह बात भी नहीं है ,कहा जा रहा है खरीदो खरीदो चाहे कर्ज़ लेकर खरीदो ।लेकिन यह तो  हद हो गई कि अब बाज़ार हमें बतला रहा है कि हमें किस चीज़ की ज़रूरत है ।
बाज़ार हमे बतला रहा है कि पत्नी से प्यार करने के लिये उसे क्या देना चाहिये ।भाई बहन को उपहार में क्या दे कि वह आपको भाई माने ? किस उपहार के देने से आपका बच्चा आपकी इज़्ज़त करेगा ? 
घरेलू और नितांत उपयोगी वस्तुओं तक तो ठीक है ,प्रेम,सौहार्द्र,भाईचारा, हँसी-खुशी भी अब हमें बाज़ार की सलाह से खरीदना होगा ? क्या हमें बतलाना होगा कि इन सबकी हमारे जीवन में ज़रूरत क्यों है ? और इन्हे हासिल करने के लिये हमारी संस्कृति में क्या प्रावधान है ? जीवन के मूल राग तो हमे पुरखों से मिले हैं। 
इन्ही भावों पर बिम्बों के माध्यम से कुछ कहने की कोशिश की है इस  छोटी सी कविता में  ।
                                   
                                                            ज़रूरत                                                      

क्या ज़रूरी है
दिया जाए कोई बयान
ज़रूरतों के बारे में


पेश की जाए कोई फेहरिस्त
हलफनामा दिया जाए


चिड़िया से पूछा जाए

क्यों ज़रूरी है अनाज का दाना
चूल्हे से तलब की जाए
आग की ज़रूरत
पशुओं से मांगा जाए
घास का हिसाब
कपड़ों से कपास का
छप्पर से बाँस का
हिसाब मांगा जाए


हल्दी से पूछी जाए
हाथ पीले होने की उमर
दवा की शीशी से पूछा जाए
दवा का असर


फूलों से रंगत की
बच्चों से हँसी की ज़रूरत पूछी जाए


क्या ज़रूरी है
हर ज़रूरी चीज़ के बारे में
किया जाए कोई सवाल ।

                        - शरद कोकास 
(इस चित्र में जबलपुर की यह एक कॉस्मेटिक्स की दुकान है जहाँ एक गरीब चायवाला चाय देने आया है , दुकान के मालिक सुनील विश्वकर्मा चाय पीते हुए  प्रसन्न हैं क्योंकि उन्हे इस वक़्त चाय की सख़्त ज़रूरत जो है . यह चित्र ऑफ सीज़न का है ,इन दिनो  तो उनके यहाँ भारी भीड़ है । इस चित्र को देखकर क्या क्या सोच सकते हैं आप ? )