रविवार, मई 16, 2010

दो लोग क्या करेंगे इस दुनिया का


  कभी कभी ऐसा होता है कि बातें काम नहीं करतीं और कविता अपना काम कर जाती है | इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है ब्लॉग जगत में वह सब जानते हैं | मुझे एक मित्र ने सलाह दी कि आप चुप क्यों हैं आप को भी कुछ कहना चाहिये | मैं ठहरा एक सीधा-सादा कवि , मैं क्या कहूँ और क्यों कहूँ ? ऐसा भी नहीं कि मैने कुछ कहा नहीं ,जहाँ कहना चाहिये और जितना कहना चाहिये वह तो मैंने कहा ही है | आज इस बारे में सोचते हुए अचानक कवि केदारनाथ सिंह की यह कविता दिखाई दे गई सो उद्धृत कर रहा हूँ । इसे पढिये इसके ध्वन्यार्थ निकालिये और इस कविता में जो सवाल है उसके बारे में सोचिये |
            दो लोग
तुमने अकेले आदमी को पहाड़ से उतरते देखा है
मैं कहूँगा - एक कविता
एक शानदार कविता

मगर उन्हे तुम क्या कहोगे
वे दो लोग जो उस पेड़ के नीचे बैठे हैं
महज दो लोग

कितने घन्टो कितने दिन कितनी शताब्दियॉ से
वहाँ बैठे है दो लोग
क्या तुम बता सकते हो ?

दो लोग ज़रा देर बाद उठेंगे
और समूचे शहर को अपनी पीठ पर लादकर
किसी नदी या पहाड़ की तरफ़ चल देंगे दो लोग

दो लोग क्या करेंगे इस दुनिया का
तुम कुछ नहीं कह सकते !
दो लोग फ़िर लौटेंगे
किसी भरी दोपहरी में सड़क के किनारे
तुम्हे अचानक मिल जायेंगे दो लोग
मगर क्यों  दो लोग
और हमेशा दो लोग

क्या  1 को तोड़ने से बन जाते हैं 2 लोग

दो लोग तुम्हारी भाषा में ले आते हैं
कितने शहरों की धूल और उच्चारण
क्या तुम जानते हो

दो लोग
सड़क के किनारे महज चुपचाप चलते हुए दो लोग
तुम्हारे शहर को कितना अनंत बना देते हैं
तुमने कभी सोचा है ?  

                 केदारनाथ सिंह

( चित्र में - दो लोग , केदार जी और शरद कोकास ,शरद कोकास के  घर में )