शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

14 अगस्त 1947 की रात में लिखी शील की कविता

आज देश में नयी भोर है नयी भोर का समारोह है


कवि शील का जन्म 15 अगस्त 1914 ई. में कानपुर ज़िले के पाली गाँव में हुआ । शील जी सनेही स्कूल के कवि हैं वे आज़ादी के आन्दोलन में कई बार जेल गये । गान्धीजी के प्रभाव मे “चर्खाशाला” लम्बी कविता लिखी । व्यक्तिगत सत्याग्रह से मतभेद होने के कारण गान्धी का मार्ग छोड़ा तथा भारतीय कम्यूनिस्टपार्टी में शामिल हुए । “मज़दूर की झोपड़ी” कविता रेडियो पर पढ़ने के कारण लखनऊ रेडियो की नौकरी छोड़नी पड़ी ।चर्खाशाला,अंगड़ाई,एक पग, उदय पथ,लावा और फूल , कर्मवाची शब्द आपकी काव्य रचनायें है तथा तीन दिन तीन घर,किसान,हवा कारुख,नदी और आदमी,रिहर्सल,रोशनी के फूल,पोस्टर चिपकाओ आदि आपके नाटक हैं ।उनके कई नाटकों को पृथ्वी थियेटर द्वारा खेला गया यहाँ तक कि रशिया में भी उनके शो हुए तथा राजकपूर ने उनमें अभिनय किया । यह कविता उन्होने 14 अगस्त 1947 की रात को लिखी थी जिसे ठीक 62 वर्ष बाद उसी समय मै यहाँ ब्लॉग पर उतार रहा हूँ ।-- शरद कोकास


15 अगस्त 1947


आज देश मे नयी भोर है-

नयी भोर का समारोह है

आज सिन्धु-गर्वित प्राणों में

उमड़ रहा उत्साह

मचल रहा है

नये सृजन के लक्ष्य बिन्दु पर

कवि के मुक्त छन्द-चरणों का

एक नया इतिहास ।

आज देश ने ली स्वंत्रतता

आज गगन मुस्काया ।

आज हिमालय हिला

पवन पुलके

सुनहली प्यारी-प्यारी धूप ।

आज देश की मिट्टी में बल

उर्वर साहस-

आज देश के कण कण

ने ली

स्वतंत्रता की साँस ।

युग-युग के अवढर योगी की

टूटी आज समाधि

आज देश की आत्मा बदली

न्याय नीति संस्कृति शासन पर

चल न सकेंगे-

अब धूमायित-कलुषित पर संकेत

एकत्रित अब कर न सकेंगे ,श्रम का सोना

अर्थ व्यूह रचना के स्वामी

पूंजी के रथ जोत ।

आज यूनियन जैक नहीं

अब है राष्ट्रीय निशान

लहराओ फहराओ इसको

पूजो-पूजो- पूजो इसको

यह बलिदानों की श्रद्धा है

यह अपमानों का प्रतिशोध

कोटि-कोटि सृष्टा बन्धुओं को

यह सुहाग सिन्दूर ।

यह स्वतंत्रता के संगर का पहला अस्त्र अमोध

आज देश जय-घोष कर रहा

महलों से बाँसों की छत पर नयी चेतना आई

स्वतंत्रता के प्रथम सूर्य का है अभिनंदन-वन्दन

अब न देश फूटी आँखों भी देखेगा जन-क्रन्दन

अब न भूख का ज्वार-ज्वार में लाशें

लाशों में स्वर्ण के निर्मित होंगे गेह

अब ना देश में चल पायेगा लोहू का व्यापार

आज शहीदों की मज़ार पर

स्वतंत्रता के फूल चढ़ाकर कौल करो

दास-देश के कौतुक –करकट को बुहार कर

कौल करो ।

आज देश में नयी भोर है

नयी भोर का समारोह है

(रात्रि 14 अगस्त 1947 )

--जनकवि शील

(हिन्दी की प्रगतिशील कवितायें-सं-राजीव सक्सेना से साभार )