क्योंकि हम मूलत: भिक्षावृत्ति के खिलाफ हैं
हमारे सामने फैले हुए हाथ पर
चन्द सिक्के रखने की अपेक्षा
हमने रख दी है कोरी सहानुभूति
और उसके फटे हुए झोले में
डाल दिये हैं कुछ उपदेश
क्योंकि हम मूलत:
भिक्षावृत्ति के खिलाफ़ हैं
उसकी ग़रीबी पर
बहाए हैं मगरमच्छ के आँसू
और गालियाँ दी हैं अमीरों को
क्योंकि हम मूलत:
भिक्षावृत्ति के खिलाफ़ हैं
उसकी फटेहाली पर
व्यक्त किया है क्षोभ
और कोसा है व्यवस्था को
उसकी ओर उंगली दिखाते हुए
क्योंकि हम मूलत:
भिक्षावृत्ति के खिलाफ़ हैं
उससे पूछा है
कोई काम करोगे
उसके काम माँगने पर
उछाल दिया है आश्वासन
नेताओं की तरह
क्योंकि हम मूलत:
भिक्षावृत्ति के खिलाफ़ हैं
फिर हमारी बस आ जाती है
हम बैठकर चले जाते हैं
चाँवल से भी वज़नी
हमारे उपदेश और सहानुभूति
और आश्वासन
उसके झोले में लगे विवशता
के पैबन्द फाड़
धूल भरी सड़क पर जहाँ- तहाँ गिर जाते हैं ।
- शरद कोकास
( चित्र में दुर्ग के रेल्वे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर एक भिखारी , दूसरा हाजी अली की दरगाह पर )