गुरुवार, अक्तूबर 14, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - सातवाँ दिन - ओड़िया कविता प्रतिभा शतपथी -डरते हैं ईश्वर भी

            14 अक्तूबर , नवरात्र के सातवें दिन आज प्रस्तुत है ओड़िया की प्रसिद्ध रचनाकार प्रतिभा शतपथी की यह कविता । प्रतिभा शतपथी का जन्म 1945 में हुआ और इनकी कविता व आलोचना की बारह से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । वे राज्य साहित्य अकादमी के अलावा अन्य पुरस्कारों से सम्मानित हैं । इस कविता का अनुवाद साहित्य अकादमी के अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया है जिनकी हिन्दी – ओड़िया में परस्पर अनुवाद की 56 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । प्रस्तुत कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 130 से साभार ।
डरते हैं ईश्वर भी

साठ आलोक वर्ष में कदम रख
तलाशती फिर रही है राह
चौराहे पर
इतने बड़े महादेश के दक्षिण में

शोर - शराबे से भरा मणियों का बाज़ार
पृथ्वी को बेच बाच कर खा जाने को तैयार लोग
चले जा रहे हैं राह बदल
आ - जा रहे हैं
दिन भर में लाखों सौदागर
वहीं एक औरत परेशान है
कहाँ है उसका घर
राह ढूँढती
कुछ ही हाथ की दूरी पर
समुद्र में टूटती निलिमा
प्रबल - लताओं से धड़कता है जीवन
संसार के सुख - दुख झेलकर
लौट जाएगी वह औरत , कहती है
कहीं तो होगा उसका एक घर
है सत्य की कसौटी
उसमें अपनी साँसों को उसने
छिन - छिन परखा है

पगली है या कोई वेश्या
या सिद्ध देवी
 न जाने कौन है वह औरत
उसे राह बताने में
खड़े होने में उसके पास
डरते हैं ईश्वर भी ।

          - प्रतिभा शतपथी