शुक्रवार, अक्टूबर 15, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - आठवाँ दिन - सिन्धी कवयित्री - विम्मी सदारंगाणी

            हम लुका छिपी खेलेंगे जब हिटलर सोया पड़ा होगा 

नवरात्र कविता उत्सव के सातवें दिन ओड़िया कवयित्री प्रतिभा शतपथी की कविता पर कविता के प्रेमी इन पाठकों के विचार प्राप्त हुए । शाहिद मिर्ज़ा शाहिद - कितना कुछ सीखने का मौका दिया आपने । संगीता स्वरूप - मार्मिक अभिव्यक्ति । डॉ.दिव्या श्रीवास्तव ज़ील - मार्मिक अभिव्यक्ति , इन कवयित्रियों से परिचय के लिए आभार । रचना दीक्षित -  बेहद मार्मिक ,मानवता को झकझोरती हुई । सुनील गज्जाणी -  आपका आभार कि यह आपने हम तक पहुँचाया । इस्मत ज़ैदी - कितने दुख हैं समाज में ऐसे में गुल ओ बुलबुल की बातें निरर्थक लगने लगती हैंअनिल कांत  - आपके इस कर्म से मिलने वाले लाभ को केवल प्रशंसा कर देने से वर्णित नहीं किया जा सकता । शोभना चौरे - बहुत ही गहरी वेदना को अभिव्यक्त करती सशक्त कविता । वन्दना (चर्चा मंच )- बेहद मर्मस्पर्शी रचना झकझोर जाती है ।  शिखा वार्ष्णेय - दिल को छू लेने वाली कविता । रश्मि रविजा - बहुत ही उम्दा कविता ।  उपेन्द्र - इतनी अच्छी कविताओं से परिचय आपके प्रयास के बगैर मुमकिन नहीं । प्रवीण पाण्डेय - इतने आयाम हैं नारी मन के ।             डॉ. अनुराग - इस बार का कथादेश अभी कल ही हाथ आया है । शुक्रिया इस कविता को बाँटने के लिए । राजेश उत्साही - एक सच्ची स्त्री से ईश्वर भी डरता है । महेन्द्र वर्मा - एक वेदनाव्यथित नारी और शक्तिस्वरूपा नारी दोनो का प्रभावशाली चित्रण । डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक -इस कविता को पढ़कर “लुच्च बड़ा परमेश्वर से कहावत का स्मरण हो आया । समीर लाल उड़नतश्तरी - बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति रही । राजेश्वर वशिष्ठ - बेहतरीन कविता व अनुवाद । संजय भास्कर - बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद । अशोक बजाज -अच्छी प्रस्तुति । अमिताभ श्रीवास्तव - अभी तो सात कविता ही हुई हैं दो का इंतज़ार है । रानी विशाल - मर्मस्पर्शी रचना । प्रो. अली -भयभीत होते ईश्वर का खयाल बहुत रोमांचित करता है । वाणी गीत - बेहद मार्मिक आभार । 
  
15 अक्तूबर 2010 । आज नवरात्र के आठवें दिन प्रस्तुत है सिंधी कवयित्री विम्मी सदारंगाणी की यह दो छोटी छोटी प्रेम कवितायें जो दिखने में बहुत छोटी हैं और बहुत सरल शब्दों में रची गई हैं । लेकिन जब मैं इनके निहितार्थ सोचने लगा तो इनमें स्त्री और समाज और पुरुषवादी मानसिकता को लेकर अनेक अर्थ खुलने लगे । आप को भी इनमें अनेक अर्थ नज़र आयेंगे । मुझे लगा यह कवितायें आप लोगों को ज़रूर पढवानी चाहिये । कविता छोटी हो या लम्बी वह कविता होनी चाहिये । प्रस्तुत कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 93 से साभार ।


1.वेटर को बुलाती हूँ

 
चाय का प्याला मैंने
तुम्हारी तरफ बढ़ाया
 

तुमने मेरी ओर नज़र घुमाई
तुम्हारी ठंडी आँखें
मेरे गरम होंठ
मेरी चाय में बाल कहाँ से आ गया
तुम चाय नहीं पिओगे
मैं ही पी लेती हूँ
तुम्हारे साथ बैठकर
सिर्फ ‘कोल्ड काफी ‘ पी जा सकती है

मैं ‘ कोल्ड काफी ‘ के लिए
वेटर को बुलाती हूँ ।



2.हम लुका-छिपी खेलेंगे

जब हिटलर सोया पड़ा होगा
गांधी अपना चरखा चलाने में डूबा होगा
उस समय
हम लुका -छिपी खेलेंगे ।

-       विम्मी सदारंगाणी
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कवयित्री का परिचय – युवा कवयित्री विम्मी सदारंगाणी ने दो सिन्धी कविता संग्रह के अलावा बाल साहित्य भी लिखा है । सिन्धी भाषा पर अध्ययन सम्बन्धी 5 पुस्तकें भी उन्होने लिखी हैं । उन्हे 1995 का गुजरात साहित्य अकादेमी पुरस्कार व एन सी ई आर टी का नेशनल चिल्ड्रेन लिटरेचर अवार्ड भी मिला है । सिन्धी से हिन्दी के अलावा गुजराती में भी उन्होने अनुवाद किए हैं । वे सिन्धी एडवाइज़री बोर्ड साहित्य अकादमी दिल्ली व नेशनल कौंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ सिन्धी लैंगवेज की सदस्य भी हैं ।
एक निवेदन - पिछली पोस्ट के सुधी पाठक एवं टिप्पणीकार जो प्रतिष्ठित ब्लॉगर भी है उनके ब्लॉग्स के लिंक मैंने साभार दिये हैं । इन ब्लॉगर्स की पोस्ट पर जाकर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें - शरद कोकास