जो लोग रंगकर्म से जुड़े हैं वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि नाटक में अभिनय के लिये स्त्री पात्र जुटाना कितना कठिन काम है । निर्देशक को बहुत नाक रगड़नी पड़ती है तब कहीं जाकर नाटक में काम करने के लिये कोई लड़की मिल पाती है । इस पर भी नाटक छोड़ने के लिये उस लड़की पर इतने दबाव होते हैं , उस पर इतने पहरे बिठाये जाते हैं कि पूछो मत । हमारी मध्यवर्गीय मानसिकता अब भी कहाँ बदली है ..? हम अब भी सोचते हैं कि नाटक ( नौटंकी) भले घर के लोगों के लिये नहीं है ,हमारे घर की लड़की नाटक में काम करेगी तो बिगड़ जायेगी । लेकिन सच्चाई यह है कि हम भी कहीं न कहीं अपनी असल ज़िन्दगी में नाटक ही तो करते हैं । इस सोच को दृश्य रूप देती हुई नाटक श्रंखला की मेरी यह कविता आप सब के लिये ...
नाटक में काम करने वाली लड़की
पिता हुए नाराज़
भाई ने दी धमकी
माँ ने बन्द कर दी बातचीत
उसने नाटक नहीं छोड़ा
घर में आये लोग
पिता ने पहना नया कुर्ता
माँ ने सजाई बैठक
भाई लेकर आया मिठाई
वह आई साड़ी पहनकर
चाय की ट्रे में लिये आस
सभी ने बान्धे तारीफों के पुल
अभिनय प्रतिभा का किया गुणगान
चले गये लोग
वह हुई नाराज़
उसने दी धमकी
बन्द कर दी बातचीत
घरवालों ने नाटक नहीं छोड़ा ।
- शरद कोकास