नींद न आने की स्थिति में लिखी कविताओं में से यह दूसरी कविता । यह कविता भी कुछ हल्के- फुल्के मूड में ही लिखी गई थी और व्यंग्य इसका केन्द्रीय भाव था । आगे चलकर इस विषय पर कुछ गम्भीर कवितायें आई हैं । लीजिये फिलहाल तो इसे पढ़िये और इसका मज़ा लीजिये ।
नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता – दो
नींद को कहीं
नज़र न लग गई हो
चचा ग़ालिब की
उन्हें मौत का ख़ौफ था
हमे ज़िन्दगी का है
आश्चर्य !
पीने के बावज़ूद
उन्हें नींद नहीं आती थी
आसमान की ओर देखते हुए
कोशिश में हूँ
बूझने की
चचा ग़ालिब ने यह शेर
शादी से पहले लिखा था
या बाद में ।
शरद
कोकास