8 अगस्त 2001 मेरी ज़िन्दगी का एक ऐसा दिन है जिसे मेरे स्मृति पटल से कोई नहीं मिटा सकता । इस दिन माँ हमे छोड़ कर चली गई थी । यह जीवन का एक ऐसा सत्य है जो एक हर एक के जीवन में घटित होता है और हम अपनी आखरी साँस तक उस घटना की तारीख को याद रखते हैं । जन्म-मृत्यु , शादी-ब्याह ,सुख-दुख ,बीमारी, आदि की तिथियों को याद रखने का हमारा अपना तरीका होता है । आज हमारे पास केलेण्डर,कम्प्यूटर जैसी आधुनिक सुविधायें हैं लेकिन पहले के लोगों के पास उनके अपने तरीके थे. जैसे फलाने की शादी तब हुई थी जब फलाने के घर बेटा हुआ था ,या अकाल उस साल पड़ा था ,या पार्टीशन तब हुआ था जब मुन्ना गोद में था । पारिवारिक घटनाओं की तिथियों के सामाजिक सरोकार भी होते थे । हमारे इतिहास के निर्माण में इस परम्परा का भी योगदान है । माँ की स्मृति को इसी परम्परा के साथ जोड़ते हुए यह कविता मैने 2001 में लिखी थी । आज उनकी पुण्य तिथि पर उनके पुण्य स्मरण के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ – शरद कोकास
याद
माँ जिस तरह याद रखती थी तारीखें
वैसे कहाँ याद रखता है कोई
माँ कहती थी
जिस साल देश आज़ाद हुआ
उस साल तुम्हारे नाना गुजरे थे
हम समझ जाते
वह सन उन्नीस सौ सैंतालीस रहा होगा
माँ बताती थी
जिस साल पाकिस्तान से लड़ाई हुई थी
उसी बरस तुम्हारे बाबा स्वर्ग सिधारे थे
हम समझ जाते
वह सन उन्नीस सौ पैंसठ रहा होगा
माँ कभी नहीं कर पायेगी
अमेरिका के अफ़गान हमले काज़िक्र
हम याद करेंगे
जिस साल ऐसा हुआ था
उस साल माँ नहीं रही थी
मुश्किल नहीं होगा समझना
वह सन दो हज़ार एक रहा होगा ।
-- शरद कोकास