वैसे तो सबसे कम झमेला इस बात में है कि बीमार हुआ ही न जाये.. लेकिन इस कम्बख़्त वायरस का क्या करें , लाख बचना चाहा लेकिन बुखार आ ही गया ... और बुखार के साथ याद आई अपनी यह तीन पुरानी बुखार कवितायें ,हमारे एक मित्र ने इन्हे नाम दिया है , बुखार में प्रेम कवितायें , लीजिये आप भी पढ़िये ....
बुखार-दो
बवंडर भीतर ही भीतर
घुमड़ता हुआ
लेता हुआ रोटी की जगह
पानी को स्थानापन्न करता
रगों में खून नहीं ज्यों पानी
शरीर से उड़ता हुआ ।
बुखार
आग का दरिया
पैर की छिंगुली से लेकर
माथे तक उफनकर बहता हुआ
छूटती कँपकपी सी
बदल जाता चीज़ों कास्वाद
साँसों का तापमान
जीभ खुश्क हो जाती
उतर जाता बुखार
माथे पर तुम्हारा हाथ पड़ते ही ।
बुखार –तीन
अछा लगता है
गिरती हुई बर्फ में खड़े
पेड़ की तरह काँपना
जड़ों
से आग लेना
शीत का मुकाबला करना
अच्छा लगता है
ठिठुरते हुए मुसाफिर का
गर्म पानी के चश्मे की खोज में
यात्रा जारी रखना ।
शरद
कोकास
बहुत अच्छी कविता , बधाई .
जवाब देंहटाएंप्रेम के बुखार को आपने बहुत अच्छे शब्दों में बाँधा है!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया .....
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंab swasthy kaisa hai......?
वायरस के संक्रमण के साथ प्रेम का संक्रमण स्वत: ही दिल दिमाग पर काबिज हो जाता है शायद ! बुखार का एक अनिवार्य लक्षण है ! बहुत सुन्दर क्षणिकायें हैं तीनों ! जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें यही कामना है !
जवाब देंहटाएंसर्दी, खांसी न मलेरिया हुआ,
जवाब देंहटाएंलव, लव, लव...
यारों मुझको लवेरिया हुआ...
(लवेरिया कविता से, कृपया शरद भाई के बारे में ऐसा-वैसा कुछ न सोचें...)
जय हिंद...
अब ब्लोगिंग का बुखार उतरा तो यह मुआ वाइरल बुखार चढ़ गया ।
जवाब देंहटाएंउतर जाता बुखार
माथे पर तुम्हारा हाथ पड़ते ही ।
इसमें थोडा विरोधाभास लगता है । :)
शुभकामनायें भाई जी ।
बुखार में प्रेम का अनूठा रसायन जरूर काम करेगा. वैसे ये क्षणिकाएं बहुत उम्दा हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति मगर जल्द स्वस्थ हों यही कामना है।
जवाब देंहटाएंआपको भी मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत ही अलग रचनायें, बुखार की गर्मी से भी गर्म।
जवाब देंहटाएंबुखार में इतनी शानदार कवितायें...अब ये तो नहीं कहा जा सकता कि बार-बार बुखार........
जवाब देंहटाएंस्च्ची कविताएं ! प्रेम की ऐसी फोटोग्रफिक अभिव्यंजना बहुत कम देखी है मैंने .
जवाब देंहटाएं# वन्दना अवस्थी दुबे , प्रेम को एक बार ही स्म्पूर्णता मे झेल जाए आदमी तो बहुत है.... बार बार ये शायद सम्भव नहीं होता
alag visay per...... bahut achchi likhi.
जवाब देंहटाएंखुबसूरत क्षणिकाएं.... भाव संयोजन चमत्कृत सी करती है....
जवाब देंहटाएंसादर...
बुखार में प्रेम कवितायें ?
जवाब देंहटाएंहमें तो लगता है कि प्रेम भी एक किस्म का बुखार है :)
बुखार क्या आया अपने साथ सृजन की नव शक्ती ले आया । अंतिम बहुत भाई ।
जवाब देंहटाएंशीत का मुकाबला करना
अच्छा लगता है
ठिठुरते हुए मुसाफिर का
गर्म पानी के चश्मे की खोज में
यात्रा जारी रखना ।
बहुत ही अच्छी क्षणिकाएं .. स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबुखार की बडबडाहत जैसी ही कविता !
जवाब देंहटाएंअपना खयाल रखिए... कहीं डीहैड्रेशन न हो जाय इस प्रेम में :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी क्षणिकाएं,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bukhar mein bhi itni badiya asarkarak kavita padhna bahut achha laga... apna khayal rakhen....shubhkamnayen..
जवाब देंहटाएंबवंडर भीतर ही भीतर
जवाब देंहटाएंघुमड़ता हुआ
लेता हुआ रोटी की जगह
पानी को स्थानापन्न करता
रगों में खून नहीं ज्यों पानी
शरीर से उड़ता हुआ ।
bahut hi sundar rakhi parv ki badhai aapko
बुखार भी अंततः विम्ब हुआ... बढ़िया कवितायेँ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत क्षणिकाएं. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
Poetry not making life rather poetry itself is LIFE..I am grateful to Mr. Sharad Kokas for giving us Awesome Thought in form of poet.
जवाब देंहटाएं@ सुचिस्मिता , बहुत बहुत धन्यवाद
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