नवरात्रि कविता उत्सव 2011 के आठवें दिन आज प्रस्तुत है अरुंधती सुब्रमण्यम की कविताअरुंधती सुब्रह्मण्यम मुंबई में रहती हैं। उनके कविता के दो संग्रह प्रकाशित हैं: On Cleaning Bookshelves और Where I Live। उनकी गद्य की किताब The Book of Buddha चर्चित रही है। भारतीय अंग्रेजी प्रेम कविताओं के प्रतिनिधि संग्रह Confronting Love की वह सह संपादक हैं। हिंदी, तमिल , इतालवी, स्पैनिश जैसी भाषाओं में उनके रचनाकर्म का अनुवाद हुआ है। उन्हें 2003 में स्टर्लिंग विश्वविद्यालय की चार्ल्स वालेस फैलोशिप प्राप्त हुई है. वह कई अंतरराष्ट्रीय कविता उत्सवों में प्रतिभाग कर चुकी हैं। अरुंधती इंटरनेशनल पोएट्री वेब की कंट्री एडीटर हैं, मुंबई में कई वर्षों तक 'चौराहा' नाम से इंटरैक्टिव अकला फोरम संचालित कर चुकी हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं साहित्य, नृत्य जैसे विषयों पर नियमित लिखती हैं।
इस कविता का अनुवाद किया है अनामिका जी ने । अनामिका जी हिन्दी की चर्चित कवयित्री हैं । अंग्रेजी में भी लेखन करती हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं । इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : 'गलत पते की चिट्ठी' , 'बीजाक्षर' , अनुष्टुप' ,'पोस्ट–एलियट पोएट्री' ,'स्त्रीत्व का मानचित्र' । अनामिका जी भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजाकुमार माथुर पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान से विभूषित हैं ।
यह कविता कवयित्री तथा अनुवादक का परिचय और अरुन्धती जी की व अनामिका जी की तस्वीरें सिद्धेश्वर सिंह ने उपलब्ध करवाई है । अनामिका जी द्वारा सम्पादित कवयित्रियों के कविता संग्रह " कहती हैं औरतें " से यह कविता साभार ।
अरुन्धती सुब्रमण्यम |
तीस तक
( अरुंधती सुब्रमण्यम की कविता )
तीस तक
मध्यच्छद
मोटा हो जाता है
आपको दिलाता हुआ याद
उन शिशुओं की
जिनको आकार दे ही नहीं पायीं आप!
अनामिका |
'सतोरी' टाली हुई योजना है!
तीस तक
सुबह-सुबह बाथरूम जाते हुए
आने ही लगती है आपको
बास मौत की!
आपको पता होता है-
थोड़ा -सा इंतजार और-
सब के सब बह जाएगें घूर्णावर्तों में-
सुगंधकातर, छालीदार,प्रेमिल खुसुर-फ़ुसुर,
कल रात की आत्मीय अतर,
अल्स्सुबह का वह विश्वास सरल!
तीस तक
संकल्प लेती हैं आप
कि आप रेक्जाविक एयर पोर्ट की
ड्यूटी फ़्री दूकान में
नहीं करेंगी खरीदारी।
फ़िल्म-इतिहास का कोर्स स्थगित
करती हैं अगले जनम तक।
पिघले हुए गुड़ के लिए आयोजित कामना
फ़िर से लगी है जोर मारने-
यह भी आता है ध्यान में!
तीस तक
मित्रों और प्रेमियों और
स्कूलशिक्षकों के
विश्वासघात पर
थोड़ा-सा मुस्का देती हैं आप!
चालीस तक शायद
सबको ही कर देगीं आप माफ़!
तीस तक
आप जान लेती हैं
कि आप चाहती हैं चलना
खमीरित सपनों के ध्वस्त साम्राज्यों से दूर
-खूब प्रशस्त, मानचित्रों के बाहर के
भूखन्डों तक
जहां कि कदम एक -एक हो कोई
साहसिक-सी यात्रा
और हर कदम अगला
लंगर!
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( अनुवाद : अनामिका )
नवरात्रि कविता उत्सव के दूसरे दिन प्रकाशित सुकृता पॉल की कविता सुनिये अर्चना चावजी की आवाज़ मे उनके ब्लॉग " मेरे मन की " पर ।