शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ..वह भी मिस वेलेंटाईन


वेलेंटाइन डे का नाम जब पहली बार सुना तब हम गधा पचीसी की उम्र पार कर चुके थे और बाकायदा इष्ट मित्रों और सम्बन्धियों की उपस्थिति में दोपाये से चौपाये बन चुके थे । दाँपत्य जीवन में प्रेम ,भोजन में रोटी की तरह शामिल था और ज़िन्दगी का मज़ा आने लगा था । तीज-त्योहार पर्व सभी आनन्द से मनाते थे कि जीवन में इस नये पर्व का प्रवेश हुआ । अब तो यह पर्व हमारे जन जीवन में शामिल हो ही चुका है   और जितना इसका विरोध हो रहा है उतना ही यह लोकप्रिय होता जा रहा है । इस पर्व का नाम  पहली बार जानने का भी एक मज़ेदार किस्सा है ।
हुआ यह कि एक दिन  एक बालक आया और मुझसे पूछने लगा “अंकल आपके पास कोई प्रेम की कविता है ?” मैने पूछा “ क्या करोगे , कहीं अपने नाम से छपवाना है क्या ,या स्वरचित काव्य प्रतियोगिता में पढना है ?” अक्सर मेरे पास स्कूल-कॉलेज के बच्चे आते रहते  हैं और स्कूल की कविता प्रतियोगिता ,भाषण प्रतियोगिता आदि के लिये कुछ कुछ सामग्री ले जाते हैं ।उस बालक ने शरमाते हुए कहा “ नहीं अंकल ,उनको... वेलेंटाईन को देना है ।“ वह कॉंवेंट में पढता था । मुझे लगा उसके यहाँ कोई वेलेंटाइन नाम की मैडम होगी जिनकी कविता आदि में रुचि होगी । अपनी साहित्यिक बिरादरी में एक और साहित्यप्रेमी जुड़ जाये यह सोचकर मैने उससे कहा “ ऐसा था तो उन्हे भी ले आते ।“ वह फिर शरमा गया और कहने लगा “ नहीं अंकल वह नहीं आ सकती ।“ मैने कहा “ ऐसी भी क्या बात है ..इस बहाने उनसे परिचय हो जाता , वे कविता वगैरह का शौक रखती हैं शायद ।“ वह पहले से ज़्यादा शरमा गया फिर कुछ हिम्मत जुटाकर बोला “ अंकल दरअसल मै उन्हे सरप्राइज़ देना चाहता हूँ । आपकी कविता के बहाने उनसे कहना चाहता हूँ कि मैं उनसे प्यार करता हूँ ।
मैडम से प्यार ..। मेरी नज़रों के सामने “ मेरा नाम जोकर “ का राजू घूम गया । मैने मन ही मन सोचा इतने बरसों बाद भी इस फिल्म का समाज में यह प्रभाव है । मैने गम्भीर होकर उससे कहा .. “ देखो बेटा .. यह प्रेम – व्रेम करने की उम्र नहीं है ,चुपचाप अपनी पढ़ाई में ध्यान दो । “ वह रुआँसा हो गया और कहने लगा ठीक है अंकल मैं उन्हे गुलाब का फूल ही दे दूंगा । मुझे लगा था कि उस पर मेरी बात का असर हुआ है लेकिन यह क्या ..यह तो मेरी कविता के बदले फूल देने पर उतारू हो गया है । मैने कुछ नर्म होकर कहा ..” ठीक है बेटा ..लेकिन इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ? और वह भी मिस वेलेंटाइन ..।
अब लड़के के पेट पकड़ पकड़ कर हँसने की बारी थी । बहरहाल उसने सब कुछ स्पष्ट किया ।पता चला कि वह हमारे ही एक कवि मित्र की बेटी थी और यह बालक कविता के बहाने उसे प्रभावित करना चाहता था ।बातों बातों में  हमने भी पता लगाया कि यह पर्व क्या है और क्यों मनाया जाता है आदि आदि । ज्ञात हुआ कि किन्ही संत वेलेंटाइन के नाम से यह पर्व मनाया जाता है । हमने सोचा हो सकता है , हमारे यहाँ भी तो संतों ने मनुष्यों को प्रेम का ही सन्देश दिया है । यह बात अलग है कि हम उनके नाम से प्रेम के नहीं धर्म के उत्सव मनाते हैं । अब प्रेम का यह उत्सव किसी विदेशी संत के नाम से ही सही ।
अब हर साल वेलेंटाईन डे पर यह किस्सा याद आता है और हम सबको सुनाते है । तो इस साल यह किस्सा आपने सुन लिया । सोचा था अपना कोई किस्सा सुनायेंगे लेकिन अब धैर्य नहीं है ..सो अगले साल । एक रेडीमेड कविता है ..जो कुछ साल पहले लिखी थी वही प्रस्तुत कर रहे हैं ..इससे ही आप बहुत कुछ समझ जायेंगे ।


                        वैलैनटाइन डे
 
उपहार में दी जाने वाली
नाजुक वस्तुओं के साथ
अपेक्षाएँ जुड़ी होती है
जो कभी नहीं टूटती

जेबखर्च से पैसे बचाकर
खरीदा गया  चीनी मिट्टी का गुलदस्ता
प्लास्टर ऑफ पेरिस की कोई मूरत 
लाख की एक कलम
पालिश किया हुआ कोई कर्णफूल
पत्थर जड़ी नाक की लौंग 
या काँच की चूड़ियाँ

किसी को सौंपते हुए
मन कांपता था
कहीं कुछ टूट न जाये
चटख न जाये कहीं कुछ
कोई खरोंच न आ जाये

बरसों बाद भी
खत्म नहीं होती अपेक्षाएँ
शुभकामनाओं की तरह
अल्पजीवी नहीं होती अपेक्षाएँ
पलती रहती हैं 
समय की आँच में 
पकती रहती हैं 

पगलाया सा  घूमता है 
एक बेबुनियाद खयाल 
जस की तस रखी होगीं
सभी चीजें उसके पास

और तो और
हमारा दिया सुर्ख़ गुलाब का फूल भी
कहीं न कहीं रखा होगा
किसी किताब के पीले पन्नों के बीच ।

                        शरद कोकास 

( कविता मेहरुन्निसा परवेज़ की पत्रिका "समरलोक" से व चित्र गूगल से साभार )