सिटी पोयम्स मुम्बई श्रंखला के अंतर्गत चार कवितायें
1.सिटी पोयम्स मुम्बई – ऊँचे टॉवर्स
ऊंचे टॉवर्स की खिड़कियों से
छन छन कर आती रोशनी
भली लगती है
इनकी रोशनी में नहीं दिखाई देते
अपने दुख दर्द
इन रोशनियों के पीछे छुपे दुख दर्द भी
कहाँ दिखाई देते हैं ।
2 . सिटी पोयम्स मुम्बई – झोपड़े
मुकुट की तरह सजा है चांद
इसी चांद को देखते हैं हम रोज़
अपने छोटे छोटे घरौन्दों से
इसी से बातें करते हैं हम
इसी से अपने सुख-दुख कहते हैं
कल जब मैं कहीं दूर चला जाउंगा
और हमारी बातें खत्म हो जायेंगी
चांद फिर उसी तरह ऊगेगा आसमान में
लेकिन वह कभी नहीं जान सकेगा
आसमानों तक कभी नहीं होती ।
नंगे पाँव रेत पर चलने का सुख
सिर्फ उन्हे महसूस होता है
जो कभी नंगे पाँव नहीं चलते ।
बाक़ी के लिये
सुख क्या और दुख क्या ?
4 . सिटी पोयम्स –मुम्बई – जुहू बीच – दो
मुठ्ठी से रेत की तरह
वक़्त के फिसलने का बिम्ब
यूँ तो बहुत पुराना है
एक ज़िन्दगी में
प्रेम के व्यक्त न हो पाने का बिम्ब
इसलिये इससे पहले कि यह ज़िन्दगी
दुख की किसी लहर के आने पर
पाँवों के नीचे की रेत की तरह फिसल जाये
कह दो जो कुछ कहना है
इसी एक पल में ।
-शरद कोकास
( चित्र -गूगल से व शरद के कैमरे से साभार )