सर्दियों की रात में अजीब सी खामोशी सब ओर व्याप्त होती है । टी.वी. और कम्प्यूटर और पंखे बंद हो जाने के बाद बिस्तर पर लेटकर कुछ सुनने की कोशिश करता हूँ । हवा का कोई हल्का सा झोंका कानों के पास कुछ गुनगुना जाता है । गली से गुजरता है कोई शख्स गाता हुआ ...आजा मैं हवाओं में उठा के ले चलूँ ..तू ही तो मेरी दोस्त है । मैं सोचता हूँ मेरा दोस्त कौन है ..यह संगीत ही ना जो रात दिन मेरे कानों में गूँजता रहता है । संगीत के दीवानों के लिये दुनिया की हर आवाज़ में शामिल होता है संगीत .. ऐसे ही कभी दीवाने पन में मैंने भी कोशिश की थी इस संगीत को तलाशने की । मेरी वह तलाश इस कविता में मौज़ूद है जो मैंने शायद युद्ध के दिनों में लिखी थी ...
संगीत की तलाश
मैं तलाशता हूँ संगीत
गली से गुजरते हुए
तांगे में जुते घोड़े की टापों में
मैं ढूँढता हूँ संगीत
घन चलाते हुए
लुहार के गले से निकली हुंकार में
रातों को किर्र किर्र करते
झींगुरों की ओर
ताकता हूँ अन्धेरे में
कोशिश करता हूँ सुनने की
वे क्या गाते हैं
टूटे खपरैलों के नीचे रखे
बर्तनो में टपकने वाले
पानी की टप-टप में
तेली के घाने की चूँ-चूँ चर्र चर्र में
चक्की की खड़-खड़ में
रेलगाड़ी की आवाज़ में
स्वर मिलाते हुए
गाता हूँ गुनगुनाता हूँ
टूट जाता है मेरा ताल
लय टूट जाती है
जब अचानक आसमान से
गुजरता है कोई बमवर्षक
वीभत्स हो उठता है मेरा संगीत
गोलियाँ चलने की आवाज़
मेरा बच्चा इन आवाज़ों को सुनकर
तालियाँ बजाता है
घर से बाहर निकलकर
देखता है आसमान की ओर
खुश होता है
वह सचमुच अभी बच्चा है ।
-- शरद कोकास