यह बताते हुए कि उन दिनो जब मै कविता का क ख ग नहीं जानता था मैने यह कविता लि
खी थी
सूर्यग्रहण पर और 16 फरवरी 1980 को सूर्यग्रहण के दिन यह प्रकाशित भी हुई थी नागपुर के
नवभारत दैनिक में . उन दिनो आज जैसे डराने वाले टी.वी.चैनल नहीं थे ,अखबारों में पढा कि ग्रहण को नंगी आंखों से नहीं देखना है वरना दृष्टि चली जायेगी लेकिन मेरा कवि तो इसका उलटा ही सोच रहा था ऐसा भी तो हो सकता है कि सूर्य की ओर देखने से अन्धे को दिखाई देने लगे .बस इसी विचार पर कविता लिख मारी .कविता क्या, बस थोडी सी तुकबन्दी..कॉलेज के दोस्तों को सुना
ई और वाह वाह भी खूब हुई .इतने सूर्यग्रहण आये और चले गये पर इसकी याद नहीं आई .कल एक पुराने मित्र ने इसकी याद दिलाई तो कागजों में ढूंढ निकाली .चलिये उन मौज-मस्ती के दिनों की याद करते हुए आपको भी सुना देता हूँ यह कहते हुए कि "प्लीज..बीयर विद मी.."
सूर्य ग्रहण 16 फरवरी 1980सूर्य ग्रहण के दिन अजब हादसा हुआअन्धे की आँख में कुछ प्रकाश सा हुआकानों सुनी थी बातें जो कभी उसनेआँखो से लगा उनको वो परखनेआवारा नौनिहालों को देख वो गश सा खा गया
वे भाषण ,वे रैलियाँ बालवर्ष का क्या हुआबहुत सुना था शोर सरकार है बदलीबदले हैं सिर्फ बैनर नेता वही नकलीसुना था कि आया है प्रजातंत्रमगर दिखा नहीं कहींपूछने पर वही जवाब आगे देखो तो सहीवही महंगाई,खाल उतरवाईविकल्पहीनता की स्थितियाँ हैंवही वादे हैं वही नारे हैंहर कोई यहाँ दुखिया हैआँख वाले अन्धों के जहाँ मेंकैसे वो रह पायेगा
अब वो बाट है जोह रहाअगला सूर्यग्रहण कब आयेगा ??शरद कोकास(चित्र गूगल से साभार )