बुधवार, नवंबर 10, 2010

बच्चों पर लिखी कवितायें जो बड़ों के लिये हैं

14 नवम्बर को फिर बाल दिवस मनाने की औपचारिकता पूर्ण करनी है । बच्चों के लिये बड़ी बड़ी बातें सोचनी हैं , रैली भी निकालनी है , भाषण भी देना है , आज के बच्चों को कल का नागरिक बताते हुए उनके कन्धों पर देश का भार सौंपने की तैयारी करनी है । शालाओं में प्रतियोगितायें आयोजित करनी हैं , बच्चों पर एक ब्लॉग भी लिखना है .... कितने सारे काम हैं ।
मैं इनमें से कुछ नहीं करने वाला । कवि हूँ , बस कवितायें लिख रहा हूँ । सोचा था कोई नई कविता लिखूँगा  लेकिन .. खैर छोड़िये , पुरानी कविताओं में से बच्चों पर लिखी यह दो कवितायें प्रस्तुत कर रहा हूँ । कवितायें थोड़ी कठिन हैं इसलिये कि लिखी भले ही बच्चों पर हों , दरअसल यह कवितायें बड़ों के लिये हैं ।

1   बच्चा अपने सपनों में राक्षस नहीं होता 

बच्चों की दुनिया में शामिल हैं
आकाश में
पतंग की तरह उड़ती उमंगें
गर्म लिहाफ में दुबकी
परी की कहानियाँ
लट्टू की तरह
फिरकियाँ लेता उत्साह

वह अपनी कल्पना में
कभी होता है
परीलोक का राजकुमार
शेर के दाँत गिनने वाला
नन्हा बालक भरत
या उसे मज़ा चखाने वाला खरगोश

लेकिन कभी भी
बच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।

    2        ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है

पत्थर को मोम बना सकता है
बच्चे की आँख से ढलका
आँसू का बेगुनाह कतरा

गाल पर आँसू की लकीर लिये
पाँव के अंगूठे से कुरेदता वह
अपने हिस्से की ज़मीन
 
भिंचे होंठ तनी भृकुटी
हाथ के नाखूनो से
दीवार पर उकेरता
आक्रोश के टेढ़े- मेढ़े चित्र

भय की कश्ती पर सवार होकर
पहुँचना चाहता वह
सर्वोच्च शक्ति के द्वीप पर

बच्चे के कोरे मानस में
ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है ।

                        - शरद कोकास