नरेश चन्द्रकर से मेरी मित्रता को अभी एक दशक भी पूरा नहीं हुआ है । लेकिन कवियों की मित्रता वर्षों में नापी नहीं जाती न ही इसे किसी कालखण्ड में बान्धा जा सकता है । नरेश का कविता संग्रह " बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी " जब परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित होने जा रहा था तो उसने कहा , " शरद यह कविता संग्रह तुम्हे समर्पित कर रहा हूँ । " मैं चौंका .. " यार अभी समर्पण करने लायक उम्र तक नहीं पहुँचा हूँ मैं । " नरेश ने एक कहकहा लगाया और कहा .पागल ...उम्र से नहीं काम से नापी जाती है कवियों की उम्र । तुम्हारी लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " तुम्हे लम्बी उम्र दे चुकी है ।
आज एक मार्च नरेश चन्द्रकर का जन्मदिन है । ढेर सारी बधाई और प्यार के साथ नरेश की यह कविता उनके इसी संग्रह से ।
बातचीत
यह आयातीत चीज़ नहीं है
इसे किसी की मिल्कियत में शुमार न करें
इसके पेटेण्ट होने के खतरे भी नहीं हैं
इसे कौन चुरा ले जा सकता है सात समुन्दर पार
किसकी मजाल जो हमें बोलने से रोके
यह तो तिलिस्मी पुड़िया है
इसे खोलें
जज़्बातों की लगाम टूट जाएगी
इसमें जीने की हज़ार नेमतें मिलेंगी
राह न सूझती हों , तो सूझेंगी
हज़ार दुश्वारियाँ हों , सुलझेंगी
इसे छोटी बात न समझें
हमारे वक़्त को इतना ख़राब बताने वाले
हमारे मिलने - मिलाने को लेकर !!
- नरेश चन्द्रकर
( सभी चित्र शरद कोकास के कैमरे से )