ओ मेरे देश ! तुम्ही को ढूँढती फिर रही हूँ ।
कल प्रकाशित विम्मी सदारंगाणी की कविता पर ओपनिंग बैट्समैन की तरह शुरुआत करते हुए संजय भास्कर ने कहा – “मैं कोल्ड कॉफी के लिये वेटर को बुलाती हूँ ..अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया । डॉ. मोनिका शर्मा ने सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार व्यक्त किया । वन्दना ने कहा इन कविताओं में बहुत कुछ अनकहा छुपा है । महेन्द्र वर्मा ने कहा पहली कविता में युवा मन की अपेक्षा दूसरी में बाल मन द्वारा दुनिया की उपेक्षा है । दीपक बाबा ने कहा ये आवारा किस्म के खयाल बेहतरीन कवियों की ही अमानत हैं । राजेश उत्साही ने कहा विम्मी जी की कविता दिल पर ऐसे गिरती है जैसे किसी ने गरम गरम चाय उंडेल दी हो ।दूसरी कविता आज के समकालीन परिदृश्य में असहिष्णु होते समाज की बात करती है । इसमत ज़ैदी ने कहा बार बार पढ़नी होगी यह कविता । संगीता स्वरूप ने कहा आपके माध्यम से अनेक भाषाओं की कवयित्रियों से परिचय हुआ । सदा ने कहा बहुत सुन्दर रचनायें ...आप एक माध्यम बने इन रचनाओं के लिए । प्रवीण पाण्डेय ने कहा दोनों की दोनों सशक्त रचनायें । शाहिद मिर्ज़ा ने कहा अच्छी और दुर्लभ रचनायें पढ़ने को मिलीं ।डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक ने कहा दोनों कवितायें बहुत ही गहन भाव अपने में समेटे हुए हैं । अली साहब ने कहा गान्धी जी से थोड़ी इज़्ज़त से पेश आया जा सकता था । कविता मानीखेज़ है । दीपक मशाल ने कहा पूरी कविता वर्कशॉप की तरह लगी यह मालिका । डॉ. दिव्या , ज़ील ने कहा अनॉदर ग्रेट कलेक्शन । डॉ. टी एस दराल ने कहा दूसरी कविता को समझने के लिए दिमाग लगाना पड़ेगा । अमिताभ मीत ने कहा यह कविता बार बार पढ़ी , समझने की कोशिश की जाएगी । समीर भाई उड़न तश्तरी ने कहा काश इस चोट की धमक सही जगह पहुँचे । अनामिका की सदायें ने कहा इनमे स्त्री ,समाज और पुरुषवादी मानसिकता को लेकर अनेक अर्थ हैं । रानी विशाल ने कहा इन कविताओं के माध्यम से काव्यशिल्प के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है । अनिल कांत ने कहा कितना कुछ कह देती हैं विम्मी जी । अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी इस सत्र में पहली बार आये , उनका स्वागत है , उन्होने कहा ..प्रेम का जेट विमान भी गजब होता है । एक समय में इतिहास के दो चेहरे ,हम कहाँ है व हमारी भूमिका कैसी है इस पर प्रश्न है । हम लुका छिपी के खेल ( इतिहास के प्रति अगम्भीरता ) में आँख मुन्दिया हो गए हैं । सिद्धेश्वर जी ने कविता की जयजयकार की ।
16 अक्तूबर 2010 । नवरात्र कविता उत्सव के अंतिम दिन आज प्रस्तुत है बांगला कवयित्री जया मित्र की कविता । इस कविता का बांगला से हिन्दी अनुवाद किया है नीता बैनर्जी ने । यह कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 94 से साभार । यह कविता 2001 में प्रकाशित है लेकिन इसे पढ़कर जाने क्यों ऐसा लगा कि यह बिलकुल अभी अभी लिखी गई है । आपको भी ऐसा लगता है क्या ?
16 अक्तूबर 2010 । नवरात्र कविता उत्सव के अंतिम दिन आज प्रस्तुत है बांगला कवयित्री जया मित्र की कविता । इस कविता का बांगला से हिन्दी अनुवाद किया है नीता बैनर्जी ने । यह कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 94 से साभार । यह कविता 2001 में प्रकाशित है लेकिन इसे पढ़कर जाने क्यों ऐसा लगा कि यह बिलकुल अभी अभी लिखी गई है । आपको भी ऐसा लगता है क्या ?
मेरा स्वदेश आज
हाथ बढ़ाने से
कुछ नहीं छू पाती उंगलियाँ
न हवा
न कुहासा
न ही नदी की गंध
बस कीचड़ में डूबते जा रहे हैं
तलुवे पाँवों के
अरे ! ये क्या है ?
पानी ?
या इंसान के खून की धारा ?
अन्धकार इस प्रश्न का
कोई जवाब नहीं देता
मेरे एक ओर फैली है
ख़ाक उजड़ी बस्ती
दूसरी ओर
खंड - खंड हुई यह ज़मीन
बीच के इस खालीपन में खड़ी
शून्य ह्दय से मैं
उध्वस्त भीड़ के
रोते हुए खोए - खोए चेहरों में
ओ मेरे देश !
तुम्ही को ढूँढती फिर रही हूँ ।
- जया मित्र
कवयित्री का परिचय – जया मित्र – जन्म 21 सितम्बर 1950 , धनबाद । उद्दलोक नामे डाको ,प्रत्न प्रस्तरेर गान , दीर्घा एकतारा ( कविता संग्रह ) एकती उपकथार जन्म , माटी ओ शिकार ( उपन्यास ) युद्धपर्व ( कहानी संग्रह ) साहित्य अकादेमी के अनुवाद पुरस्कार तथा आनन्द पुरस्कार से सम्मानित ।
अनुवादक का परिचय – नीता बैनर्जी – जन्म 17 नवम्बर 1948 मुम्बई । असमिया बांगला , राजस्थानी हिन्दी व अंग्रेज़ी में अनुवाद । उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान और भारतीय अनुवाद परिषद से सम्मानित ।
(चित्र गूगल से साभार )