नाटक
एक से हाथ मिलाकर
उसने कहा हलो
दूसरे से मिला गले
लगाया एक कहकहा
बच्चे को उठाया गोद में
प्यार से चूमकर बढ़ गया आगे
भाभी जी से की नमस्ते
दोस्त की पीठ पर जमाई धौल
शिकायत के लहजे में पूछा
कहाँ रहते हो आजकल
वह कहता रहा कुछ न कुछ
इसलिये कि कहने को बहुत कुछ था ( यह चित्र मेरे कवि मित्र हरिओम राजोरिया और
उनकी पत्नी सीमा का है । दोनो बहुत अच्छे
वह कहता रहा कुछ न कुछ रंगकर्मी हैं और अशोकनगर म.प्र. में रहते हैं ,हाँ
वह कहता रहा कुछ न कुछ रंगकर्मी हैं और अशोकनगर म.प्र. में रहते हैं ,हाँ
इसलिये कि कहने को कुछ नहीं था कविता में जिस मित्र की विशेषता बताई गई है
वो ये नहीं हैं वो कोई और हैं )
कहते कहते थक गया
बैठ गया मित्र के पास
फिर कहने लगा
चर्चा में बने रहने के लिये
कितना नाटक करना पड़ता है ।
- शरद कोकास