बुधवार, जुलाई 07, 2010

चर्चा में बने रहने के लिये नाटक करना पड़ता है

किसी को स्वाभाविक व्यवहार से अलग व्यवहार करते हुए देख हम अनायास ही कह देते हैं " क्यों नाटक कर रहे हो यार ? " अगले व्यक्ति ने कभी ज़िन्दगी में कोई नाटक नहीं किया होता है । उसे पता ही नहीं होता अभिनय क्या है और नाटक क्या है फिर भी वह यह सब करता रहता है । अक्सर बाज़ार में किसी कार्यक्रम में ऐसे ही मित्र मिल जाते हैं सभीका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना जानते हैं । कुछ यह सायास करते हैं कुछ अनायास । बहरहाल ऐसे मित्र आपके भी होंगे देखिये इस कविता को पढ़कर किसी की याद आ जाये ...


       नाटक 

एक से हाथ मिलाकर
उसने कहा हलो
दूसरे से मिला गले
लगाया एक कहकहा
बच्चे को उठाया गोद में
प्यार से चूमकर बढ़ गया आगे

भाभी जी से की नमस्ते
दोस्त की पीठ पर जमाई धौल
शिकायत के लहजे में पूछा
कहाँ रहते हो आजकल

वह कहता रहा कुछ न कुछ
इसलिये कि कहने को बहुत कुछ था                       ( यह चित्र मेरे कवि मित्र हरिओम राजोरिया और 
                                                                    उनकी पत्नी सीमा का है । दोनो बहुत अच्छे          
वह कहता रहा कुछ न कुछ                                    रंगकर्मी हैं और अशोकनगर म.प्र. में रहते हैं ,हाँ 
इसलिये कि कहने को कुछ नहीं था                          कविता  में जिस मित्र की विशेषता बताई गई है
                                                                                       वो ये नहीं हैं वो कोई और हैं )    
कहते कहते थक गया
बैठ गया मित्र के पास
फिर कहने लगा
चर्चा में बने रहने के लिये
कितना नाटक करना पड़ता है ।

                        - शरद कोकास