सोमवार, अप्रैल 04, 2011

नवरात्रि प्रथम दिवस - रानी जयचंद्रन की कविता


रानी जयचंद्रन मलयालम और अंग्रेजी की युवा कवि हैं जो केरल के एक छोटे से कस्बे वर्कला  में रहती हैं।  समकालीन भारतीय अंग्रेजी कविता में यह एक नया और अलग - सा स्वर है जिसे हिन्दी कविता के पाठकों और प्रेमियों से अवश्य परिचित कराया जाना चाहिए। रानी जयचंद्रन की इस कविता - पुस्तक में कुल 22 कवितायें संकलित हैं जो कवितायें समकालीन भारतीय अंग्रेजी कविता के उस रूप - स्वरूप से परिचित कराती हैं जो अपनी जड़ों से गहराई तक संबद्ध है. ये कवितायें अपने निकट की प्रकृति तथा परिवेश से मात्र रागात्मकता और रुमानियत ही ग्रहण नही करतीं बल्कि जीवन - जगत की चुनौतियों व संघर्षों से टकराने के लिए भरपूर ऊर्जा और उत्साह भी हासिल करती दिखाई देती हैं और ऐसा करते हुए वे न तो सपाटबयानी पर उतरती नजर आती हैं और न ही कोई वक्तव्य या सूत्रवाक्य बन कर रह जाती हैं. लयात्मकता , सीधी सरल भाषा , आत्मपरक कहन शैली और लाउड हो जाने से बचने का सचेत आत्म - अनुशासन इस संग्रह की कविताओं की कुछ अन्य खूबियां हैं जो इसे रेखांकित करने योग्य बनाती हैं. प्रस्तुत हैं उनकी यह कविता जिसका अनुवाद किया है सिद्धेश्वर सिंह ने  :
          
          
अनंत जीवन
                                               
रानी जयचंद्रन
घाटी की ढलानों पर                                                 
ऐश्वर्य के मुकुट की तरह       
फिर खिला है कुरिन्जी*
बारह बरस के बाद.
नर्म - नाजुक फुहार और
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी- नीले रंग के फूल की चपल आँखें.

खूब गहरे तक धँसकर
पंखुड़ियों को चूमती हैं सूरज की किरणें
और उनमें भर देती हैं सुर्ख रंगत की सजावट .
चंद्रमा की रोशनी से नहाई हुई रात में
फैलता ही जा रहा है
ढलानों पर धीर धरी धरती का खिंचाव.

प्रेम की ऊष्मा से छलछलाती हवा
फुसफुसाहटों में करती आ रही है कोई बात
ठगी ठिठकी गंभीर हो ठहर जाती है
देर तक इस जगह.
और शान्त तैरता हुआ बादल
गाने लगता है
एक अकेले दिवस का
सिद्धेश्वर सिंह
कभी न खत्म होने वाला गौरवगान .

बारह बरस के बाद.
फिर खिला है कुरिन्जी
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी - नीले रंग के फूल की चपल आँखें.

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कविता - रानी जयचंद्रन 
अनुवाद - सिद्धेश्वर सिंह