शनिवार, जुलाई 31, 2010

उदासी मन का एक्स रे होती है

                      कल शाम बारिश हो रही थी ... लगातार  एक सुर में ... चारोँ ओर एक खामोशी सी छाई थी ... अचानक मोबाइल पर एक सन्देश आया .. कैसी बारिश है यह ..ऐसा लगता है जैसे कोई बिना आवाज़ रो रहा है । मन अचानक कई कई बरस पीछे लौट गया । याद आया ऐसे ही दिन थे वे जब मैं बेहद उदास था । उन दिनों मैने उदासी पर कुछ कवितायें लिखी थीं ..और उदासी पर कवितायें लिखने के बाद मेरी उदासी दूर हो गई थी । हो सकता है इन्हे पढ़ने के बाद आपकी उदासी दूर हो जाये और बारिश की बूँदों के संग बह जाये ....

उदासी पर कुछ कविताएँ

          एक


दीवारों से उतरता है
उदासी का नीला रंग
तन मन पर छा जाता है
कोहरे की चादर  चीरता हुआ
दबोच लेता है मुझे
अकेला पाकर


       दो

 झील का ठहरा जल है उदासी
बरसों से यूँही ठहरा  हुआ
यह जानते हुए भी
कि वह फिर वैसा ही हो जाएगा
कोशिश की जा सकती है
उसमें कंकर फेंकने की


    तीन 

उदासी
आदमी के चेहरे पर
मन का एक्स रे  होती है

     चार 

 कोई पत्ता नहीं हिलता
नहीं खिलता कोई फूल
धूल नहीं उडती
हवा खामोश होती है
जब उदास होती हो तुम

      पाँच 

रोशनी के दायरे में
किसी खास कोण पर
तुम्हारा  चेहरा
बिल्कुल उदास लगता है
कुसूर रोशनी का नहीं है

                 - शरद कोकास  

(चित्र गूगल से साभार )