जिनकी साक्षरता के लिये प्रयास किये जा रहे हैं उनमे से नब्बे प्रतिशत को नहीं पता होगा कि आज अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस है । पढ़े-लिखों में से भी कितनों को पता है !! टी.वी पर कुछ आ गया तो देख लिया वरना हम अपनी ज़िन्दगी में चैन से हैं हमे क्या करना है । कभी सोचा है हमने दिन भर में कितने निरक्षरों से हमें काम पड़ता है ? कामवाली बाई, धोबी,दूधवाला, मोची,पंचरवाला ,साफ सफाई करने वाला । हम कभी पूछते हैं उनसे भैया स्कूल क्यों नहीं गये ,और पूछ भी लेते हैं तो क्या कर देते हैं इनके लिये । आप मुझसे भी पूछ सकते हैं यह सवाल लेकिन मेरे पास इसका उत्तर है । मैने दुर्ग ज़िले के साक्षरता अभियान मे 5-6 वर्षों तक सक्रिय भागीदारी की है और एक अक्षर सैनिक से लेकर मुख्य स्त्रोत व्यक्ति तक का काम किया है । 90 से 95 तक का वह दौर जब सरकारी प्रयासों से अलग एक आन्दोलन की तरह यह अभियान हमारे दिमागों मे पलता था ,दिन भर और देर रात तक काम करने के बाद नींद में भी कई प्रश्न मचलते थे और कई बार कविता बनकर कागज़ पर उतर आते थे । उसी दौर की एक कोंच-कविता जो जन गीत के शिल्प में है यहाँ दे रहा हूँ उन तमाम पढ़े-लिखे लोगों को याद करते हुए जो उस समय मेरे साथ थे और सफदर हाशमी, हरजीतसिंह हुन्दल और ऐसे ही कई कवियों की कविताओं के संग इसे भी गाया करते थे ।
पढ़े-लिखों से एक सवाल
रहते हुए आपके क्यों बुझी मशाल है
आप हैं पढ़े लिखे आपसे सवाल है
ज्ञान को ढोते हुए आप यहाँ आ गये
सुख से भरी दुनिया में अपना मकाँ पा गये
अब भी क्यों अनपढ़ो का जीना मुहाल है
आप हैं पढ़े लिखे आपसे सवाल है
संस्कार जिस से लिये शब्द और भाषा के
उस समाज को क्या दिया सिवाय निराशा के
प्रतिदान के प्रश्न पर क्यों उठ रहा बवाल है
आप हैं पढ़े -लिखे आपसे सवाल है
बेटे और बेटियाँ हैं आपके पढ़े-लिखे
नौनिहाल देश के विवशता के हाथों बिके
है कर्तव्य आपका या फकत खयाल है
आप हैं पढ़े -लिखे आपसे सवाल है
सुविधायें ज़िन्दगी में जो आपकी जुटाते है
ज़िन्दगी में खुद की वो मुसीबतें उठाते हैं
रक्त का खौलना क्या क्षणिक उबाल है
आप हैं पढ़े -लिखे आपसे सवाल है
-- शरद कोकास
(छवि गूगल से साभार )