इस चैत्र नवरात्र कविता उत्सव में आप सभी पाठकों का स्वागत है । इस बार हम लोग भारतीय कवयित्रियों की अंग्रेज़ी कविताओं के हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं । अब तक आपने यहाँ रानी जयचन्द्रन , सुकृता और ममांग दाई की कविताओं के अनुवाद पढे । इन मूल अंग्रेज़ी कविताओं का अनुवाद श्री सिद्धेश्वर सिंह ने किया है । इस क्रम में आज पढ़िये नीटू दास की यह कविता । मैं और सिद्धेश्वर सिंह आप सभी पाठकों के आभारी हैं ।
समकालीन भारतीय कविता में स्त्रीवाद के एक प्रमुख स्वर के रूप में नीटू दास की एक विशिष्ट छवि है। गुवाहाटी में जन्मी और अब दिल्ली निवासिनी इस युवा कवि ने ब्रिटिश राज में असमिया पहचान जैसे विषय पर पी- एच०डी० की डिग्री हासिल की है और संप्रति वे दिल्ली विश्विद्यालय में प्राध्यापक हैं। उनकी कवितायें पोएट्री इंटरनेशनल वेब, म्यूज इंडिया, प्रतिलिपि, पोएट्री विद प्रकृति, अल्ट्रा वायलेट, जैसे प्रतिष्ठित ऑनलाइन मचों पर उपल्ब्ध हैं तथा वैश्विक स्त्री कविता के प्रतिनिधि संकलन 'नाट अ म्यूज' में संकलित हैं । नीटू दास का कविता संग्रह 'Boki' शीर्षक से २००८ में वर्चुअल आर्टिस्ट्स कलेक्टिव, शिकागो द्वारा प्रकाशित हुआ है।
मेरा चेहरा
( नीटू दास की कविता )
नीटू दास |
अपने हाथों में थामे
अपना चेहरा
मैं कर रही हूँ इसके निशानों की शिनाख्त।
दूर के एक पितृव्य की घूरती आँखे
जीवित हैं मुझमें
जब हम निरखते हैं वृक्षों को
तो वे दिखाई देते हैं खिलखिलाते हुए।
मेरी नाक का
एक भाग दादी का पार्वतिक - पृष्ठ
और दो ढलुँवें हिस्से पिता के दो नथुने।
मेरे पंजों से अपने पंजे कुरेदने का
बदमाशी भरा खेल खेलता कोई इंसान
टँगा है मेरे उजबक - मुखड़े पर ।
सिद्धेश्वर सिंह |
फोटोफ्रेम में जड़े अपने पूर्वजों से
मुझे दाय में मिले हैं
मुस्कान - विहीन अधर
जाल और जलधार के मध्य
अँधेरे में सरकते
मछुआरों से मैंने पाई है त्वचा ।
स्वेद ग्रंथियों
और सूरज के झुलसाव में अवस्थित है
मेरा अपना अतीत ।
मुझमें उभरो
छिपकली की लकीरों की तरह
अकड़ती - डोलती दुम और परतदार आँखों के साथ।
किसी टहनी की चोट की तरह
किसी व्याधि के लघु ज्वाल - मुखविवर की तरह
उभरो मेरी नासिका पर ।
किसी पतंगे के पंखों से झड़ी धूल की तरह
मेरे कपोलों पर
किरकिराये तुम्हारी उपेक्षा ।
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( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )