रविवार, अप्रैल 10, 2011

चैत्र नवरात्रि कविता उत्सव 2011 - सातवाँ दिन - कमला दास की कविता


          नवरात्रि कविता उत्सव में आज सातवें दिन प्रस्तुत है प्रसिद्ध लेखिका कमला दास की कवितायें जिनका अनुवाद किया है अशोक कुमार पाण्डेय ने ।
          भारत की मशहूर लेखिका कमला दास ने अंग्रेजी तथा मलयालम दोनो ही भाषाओं में अनेक कविताएँ , कहानियाँ व उपन्यास लिखे हैं । उनकी महत्वपूर्ण कृति उनकी आत्मकथा है जिसका नाम “ माई स्टोरी “  है ।इस महत्वपूर्ण कृति का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है । उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ है .. द नॉवेल अल्फाबेट ऑफ लस्ट ,समर इन कलकत्ता ,द ओल्ड प्ले हॉउस अंड अदर पोयम्स , दी अन्नामलाई पोयम्स ,आदि ।
             युवा कवि व अनुवादक व ब्लॉगर अशोक कुमार पाण्डेय की अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित है मार्क्स की जीवनी पर एक किताब , एक लेखों का संग्रह  और अभी एक ताज़ातरीन कविता संग्रह “ लगभग अनामन्त्रित “ इसके अलावा देश भर की साहित्यिक पत्रिकाओं में उनके लेख व कवितायें प्रकाशित होती हैं । उनके युवा दखल , असुविधा और जनपक्ष  ब्लॉग तो आपने देखे ही होंगे । अशोक कुमार पाण्डेय वर्तमान में ग्वालियर में हैं और पिछले दिनों कविता पर एक महत्वपूर्ण आयोजन “ कविता समय “ उन्होंने संपन्न किया है ।
            लीजिये पढ़िये कमला दास की यह कवितायें । मूल अंग्रेज़ी कविताएँ आप देख सकते हैं ARJUNPURI'S BLOG में ।

 कीड़े

सांझ ढले, नदी के तट पर
कृष्ण ने आख़िरी बार उसे प्रेम किया
और चले गये फिर उसे छोड़कर
उस रात अपने पति की बाहों में
ऐसी निष्चेष्ट पड़ी थी राधा

कि जब उसने पूछा
क्या परेशानी है?
क्या बुरा लग रहा है तुम्हें मेरा चूमना, मेरा प्रेम
तो उसने कहा
नहींबिल्कुल नहीं

लेकिन सोचा
क्या फर्क पड़ता है किसी लाश को
किसी कीड़े के काटने से!




प्रेम

जब तक नहीं मिले थे तुम
मैने कवितायें लिखीं, चित्र बनाये
घूमने गयी दोस्तों के साथ

अब जबकि प्यार करती हूँ मैं तुम्हें
बूढ़ी कुतिया की तरह गुड़ीमुड़ी सी पड़ी है
तुम्हारे भीतर मेरी ज़िंदगी
शांत


 
बारिश

अपने प्यारे कुत्ते की मौत और उसकी अंत्येष्टि के बाद
हमने छोड़ दिया वह पुराना बेकार सा घर
दो बार खिल चुके गुलाब के पौधे को उखाड़ दिया जड़ों से
और किताबें, कपड़े तथा कुर्सियाँ लादे
तुरत निकल आये वहाँ से

अब हम एक नये घर में रहते हैं
छतें नहीं टपकती यहाँ
लेकिन जब बारिश होती है
मैं सुनती हूँ बूँदों की आवाज़
और देखती हूं वह पुराना चूता हुआ ख़ाली घर
जहाँ मेरा प्यारा कुत्ता सोया हुआ है अकेला

मूल कविता कमला दास
अनुवाद - अशोक कुमार पाण्डेय 

यह हर्ष का विषय है कि सुश्री अर्चना चावजी अपने ब्लॉग पर इस नवरात्रि कविता उत्सव में प्रकाशित कविताओं का पाठ कर रही हैं । उनके हम बहुत आभारी है । यह पाठ आप उनके ब्लॉग " मेरे मन की " पर सुन सकते हैं । - शरद कोकास