मेरा कमरा
फर्नीचर सिर्फ फर्नीचर की तरह
नहीं इस्तेमाल होता है
एक बैचलर के कमरे में
बुर्जुआ उपदेशों की तरह
मेज़ पर बिछा घिसा हुआ कांच
नीचे दबे हुए कुछ नोट्स
रैक पर रखी मार्क्स की तस्वीर के साथ
चाय के जूठे प्यालों की
तलहटी में जमी हुई ऊब
किनारे पर किन्ही होंठों की छाप
पलंग पर उम्र की मुचड़ी चादर पर फ़ैली
ज़िन्दगी की तरह खुली हुई किताबें
अधूरी कविता जैसे खुले हुए कुछ कलम
तकिये के नीचे सहेजकर रखे कुछ ताज़े खत
अलग अलग दिशाओं का ज्ञान कराते जूते
कुर्सी के हत्थे से लटकता तौलिया
खिड़की पर मुरझाया मनीप्लांट
खाली बटुए को मुँह चिढ़ाता
एक रेडियो खरखराने के बीच
कुछ कुछ गाता हुआ और एक घड़ी
ग़लत समय पर ठहरी हुई
मेरे सुंदर सुखद सुरक्षित भविष्य की तरह
इन्हे सँवारने की कोशिश मत करो
मुझे यह सब ऐसे ही देखने की आदत है
क्यों मेरी आदत बिगाड़ना चाहती हो ?
- शरद कोकास