रविवार, मई 03, 2009

3 मई 2009 शरद बिल्लोरे की पुण्यतिथि


लीलाधर मंडलोई की पुस्तक "दिल का किस्सा" में पढें शरद बिल्लोरे पर लेख "मरनेवाले कवि नकलची होते हैं"
शरद बिल्लोरे की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहे हैं उनके मित्र शरद कोकास
१९७३- ७४ की बात है.. Regional College OF Education Bhopal में शरद बिल्लोरे बी.ए. आनर्स का छात्र था और मै बी.एस.सी. आनर्स का .श्री लीलाधर मंडलोई हम दोनों के सीनीयर थे और कॉलेज मे प्रवेश करते ही हम दोनो की रेगिंग ले चुके थे और जान चुके थे कि इन दोनो शरद के भीतर कवि नामक एक जीव बसता है ।
शरद बिल्लोरे को हम लोग आशु कवि कहते थे .किसी घटना को घटित होते हुए वह देखता और बोलना शुरु कर देता ..कुछ देर बाद हमें समझ मे आता ..अरे यह तो कविता है .सभी उसकी इस प्रतिभा से चमत्कृत थे .उसकी हरकतें तो इतनी अजीब होती थीं कि पूछो मत..शरद की कक्षा में उसका एक ग्रूप था अतुल व्यास ,रेणु पंजवानी,संतोष जोशी,विजय बुट्टन् और जानी पाल ।श्यामला हिल्स पर कॉलेज हॉस्टल और हरियाली से भरपूर् कैम्पस शाम को अक्सर हम लोग कॉलेज के पीछे पडी बेंचों पर जाकर बैठ जाते और वहाँ से तालाब मे झाँका करते .एक दिन प्रिंसिपल को पता चला तो उन्होने सभी को तलब किया "देखिये कैम्पस मे यह सब नही चलेगा लडके लडकियाँ एक साथ.."सभी घबरा गये लेकिन शरद ने जवाब दिया.."सर हम लोग तो सभी एक ही फेमिली के हैं.. संतोष दा मेरे बडे भाई हैं,उनसे छोटे हैं अतुल व्यास उनसे बडे हैं जानी पाल ,रेणु जानी की छोटी बहन है ,और विजय तो हम सभीकी छोटी लाडली बहन है इस तरह हम सब तो फेमिली मेम्बर हैं "
शरद बिल्लोरे के ऐसे बहुत सारे किस्से मुझे याद हैं.कॉलेज के बाद फिर उससे मुलाकात नही हुई फिर अचानक एक दिन सुना कि अरुणाचल प्रदेश की अपनी नई नौकरी से अपने गाँव रहटगाँव लौटते हुए 3 मई 1980 को कटनी स्टेशन पर लू लगने से उसकी मृत्यु हो गई.अंत मे उसकी एक कविता..घर छोडते समय "विदा के समय /सब आये छोडने/दरवाजे तक माँ/मोटर तक भाई/जंकशन पर बडी गाडी पकडने तक दोस्त /शहर आया अंत तक साथ और लौटा नहीं(शरद के कवितासंग्रह "तय तो यही हुआ था "से साभार)
शरद बिल्लोरे भी कहाँ लौटा ?????
आपका- शरद कोकास