शरद बिल्लोरे की एक कविता
शरद और मैं भोपाल के रीजनल कॉलेज में साथ साथ थे । कविता लिखने की शुरुआत के साथ साथ बहुत सारी बदमस्तियाँ हमने कीं । मैं सोच रहा था इस बार फिर उसकी किसी शरारत के बारे में लिखूंगा लेकिन मैं सिर्फ सोचता रहा और कुछ लिख नहीं पाया । सो उसकी यह एक प्रेम कविता जो उसने अपनी अस्थायी नौकरी के शुरुआती दिनो में लिखी थी । शरद आज ही के दिन हमसे बिछुड़ गया था । उसकी इस कविता में और अन्य कविताओं में भी जितने बिम्ब हैं वे सब हम दोस्तों के जाने पहचाने हैं इसलिये यह कवितायें हमें बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन कुछ ऐसे बिम्ब भी होते हैं जो एक खास उम्र में सभी को अपने से लगते हैं ..शरद बिल्लोरे की कविता की यही ख़ासियत है कि उसकी कविता सभी को अपनी ही दास्तान लगती है ।बहुत सहजता के साथ वह बड़ी- बड़ी बातें कविता में लिख जाता था ।
शरद ने बाद के दिनों मे अपनी दाढ़ी बढ़ा ली थी ,ऐसा उसने किसी के कहने पर किया था हम उसकी दाढ़ी कटवाने के पीछे पड़े रहते थे और वह हँसता था । फिर सब अपने अपने शहरों और गाँवों को लौट गये । शरद चिठ्ठियाँ लिखता रहा और फिर एक दिन अरुणाचल प्रदेश में उसे नौकरी मिली और वह चला गया । पहली ही छुट्टियों में घर लौटते हुए कटनी स्टेशन पर ट्रेन में उसे लू लगी और अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया । बाद में उसकी कविताओं का संग्रह मित्रों के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ ने प्रकाशित किया ।
अब जबकि तुम इस शहर में नहीं हो
हफ्ते भर से चल रहे हैं
जेब में सात रुपये
और शरीर पर एक जोड़ कपड़े
कल ही पूरा पढ़ा
और कल ही अफसर ने
मेरे काम की तारीफ की
दोस्तों को मैंने उनकी चिठ्ठियों के
लम्बे लम्बे उत्तर लिखे
और माँ को लिखा
कि मुझे उसकी खूब खूब याद आती है
संवादों के
अपमान की हद पार करने पर भी
मुझे मारपीट जितना
गुस्सा नहीं आया
और बरसात में
सड़क पार करती लड़कियों को
तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है
और जबकि तुम
इस शहर में नहीं हो
मैं
दाढ़ी कटवाने के बारे में सोच रहा हूँ ।
- शरद बिल्लोरे
शरद को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.. यही सोचता हूँ कि वह आज होता तो देश का एक बड़ा कवि होता । क्या कहूँ उसे याद करते हुए आँखों के साथ साथ मन भीग जाता है..। आज कुछ मित्रों के साथ शरद की स्मृतियों को शेयर किया और आज ही मुझे पता चला कि जिसे उसकी दाढ़ी अच्छी लगती थी वह इन दिनो कनाडा में है । शरद पर न सही उसकी कविता पर कुछ तो कहिये - शरद कोकास
चित्र 1 -शरद बिल्लोरे के कविता संग्रह का मुखपृष्ठ चित्र 2 - रीजनल कॉलेज भोपाल