शुक्रवार, अक्टूबर 08, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - प्रथम दिवस - पद्मा सचदेव

                          आगे आगे क्या होना है                                           
 आज नवरात्रि के प्रथम दिन आप सभी का स्वागत है ।  आज प्रस्तुत है डोगरी की सुप्रसिद्ध कवयित्री पद्मा सचदेव की यह कविता । पदमा जी का जन्म अप्रेल 1940 को जम्मू में हुआ । आपकी डोगरी व हिन्दी में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें कविता , साक्षात्कार , कथा साहित्य और संस्मरण की पुस्तकें है । इनमें बूँद बावड़ी , अमराई , भटको नहीं धनंजय , नौशीन , गोद भरी , अक्खरकुंड, तवी ते चन्हान ,नेहरियाँ गलियाँ , पोता पोता निम्बल आदि उल्लेखनीय हैं । पद्मा सचदेव साहित्य अकादेमी , हिन्दी अकादेमी , जम्मू कश्मीर कल्चरल अकादेमी , सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कार ,उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार , राजा राम मोहन राय पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित हैं । आपने जम्मू में रेडियो पर स्टाफ़ कलाकार के रूप में भी कार्य किया और दिल्ली मे डोगरी समाचार वाचक के पद पर भी कार्य किया ।  
            इस कविता में जम्मू एक शहर की तरह नहीं बल्कि घर के एक सदस्य की तरह है । इस कविता में निहित अनेक अर्थों को आप तलाश सकते हैं । यह कविता साहित्य अकादेमी की द्वैमासिक पत्रिका “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 104 से साभार । इस कविता का डोगरी से हिन्दी अनुवाद कवयित्री ने स्वयं किया है  

सच्च बताना साईं

सच्चो सच्च बताना साईं
आगे आगे क्या होना है

खेत को बीजूँ न बीजूँ
पालूँ या न पालूँ रीझें
धनिया पुदीना बोऊँ न बोऊँ
अफ़ीम ज़रा सी खाऊँ न खाऊँ
बेटियों को ससुराल से बुलाऊँ
कब ठाकुर सीमाएँ पूरे
तुम पर मैं कुर्बान जाऊँ
आगे आगे क्या होना है ।

दरिया खड़े न हों परमेश्वर
बच्चे कहीं बेकार न बैठें
ये तेरा ये मेरा बच्चा
दोनों आँखों के ये तारे
अपने ही हैं बच्चे सारे
भरे रहें सब जग के द्वारे
भरा हुआ कोना कोना है
आगे आगे क्या होना है ।

बहें बाज़ार बहें ये गलियाँ
घर बाहर में महके कलियाँ
तेरे मेरे आँगन महके
 बेटे धीया घर में चहकें
बम गोली बंदूक उतारो
इन की आँखों में न मारो
ख़ुशबुओं में राख उड़े न
आगे आगे क्या होना है

जम्मू आँखों में है रहता
यहाँ जाग कर यहीं है सोता
मैं सौदाई गली गली में
मन की तरह घिरी रहती हूँ
क्या कुछ होगा शहर मेरे का
क्या मंशा है क़हर तेरे का
अब न खेलो आँख मिचौली
आगे आगे क्या होना है

दरगाह खुली , खुले हैं मन्दिर
ह्रदय खुले हैं बाहर भीतर
शिवालिक पर पुखराज है बैठा
माथे पर इक ताज है बैठा
सब को आश्रय दिया है इसने
ईर्ष्या कभी न की है इसने
प्यार बीज कर समता बोई
आगे आगे क्या होना है
-       पद्मा सचदेव