मंगलवार, जून 19, 2012

1988 की कवितायें - नीन्द न आने की स्थिति में लिखी कवितायें - पाँच

नीन्द के बारे में कहीं कोई लिखित नियम नहीं होता । कभी ऐसा भी होता है कि बेहद थके होने के बावज़ूद नीन्द नहीं आती और कभी ऐसा भी होता है कि दिनभर सोते रहने के बावज़ूद भी नीन्द आ जाती है । लोग कहते हैं कि दिनभर मेहनत करने वाले मज़दूरों को रात जल्दी नीन्द आ जाती है लेकिन मैंने देखा है जब चिंतायें सर पर सवार हों तो मज़दूरों को भी नीन्द नहीं आती ।
किसी को किताब पढ़ते ही नीन्द आ जाती है तो किसी की नीन्द किताब पढ़ते हुए गायब हो जाती है । किसी को चाय पीने से नीन्द आ जाती है किसी की नीन्द चाय पीने से उड़ जाती है । जितना हम नीन्द के बारे में सोचते हैं उतना ही वह नहीं आती ।
खैर ऐसी कितनी ही बाते हैं जो मैं नीन्द न आने की स्थिति में सोचता हूँ । कभी कभी कोई कविता रात भर दिमाग में चलती रहती है । सुबह जागने के बाद कुछ भी याद नहीं रहता । ऐसा लगता है , लिख लेता तो कितना अच्छा होता । एक बार कोशिश भी की कागज और कलम लेकर सोने की । सुबह जब जागा तो एक दो अक्षरों के बाद कागज पर केवल लकीरें थीं ।
छोड़िये .. यह सब बातें तो चलती रहेंगी । फिलहाल पढ़िये नीन्द ना आने की स्थिति में लिखी एक छोटी सी प्रेम कविता । जी हाँ प्रेम कविता ही है .. पढ़िये तो सही ।

 नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता –पाँच

कितना मुश्किल होता है
नींद के बारे में सोचना
और नींन्द का न आना

नींद के स्थान पर
तुम्हे रखूँ
तब भी यही बात होगी

मैने
नींद न आने का कारण
खोज लिया है
मैं नींद से बहुत प्यार करता हूँ ।

                        शरद कोकास