शनिवार, दिसंबर 05, 2009

इसके लिये भी भूमिका लिखूँ.....?

            छह दिसम्बर उन्नीस सौ ब्यानबे



रेल में सवार होकर अतिथि आये
बसों में चढ़कर अतिथि आये

पैदल पैदल भी अतिथि आये
कारों में बैठकर भी अतिथि आये



बनाये गये तोरणद्वार
बान्धे गये बन्दनवार
पाँव पखारे गये
खूब हुआ खूब हुआ
परम्परा का निर्वाह



जुलूस निकले
जय जयकार हुई
शंख बजे
घड़ियाल बजे
नारे गूंजे
भाषण हुए
गुम्बद गिरा

कुचले गए फूल
रौन्दे गये पत्ते



अखबारों में छपा
नगरी राममय हुई ।

                        - शरद कोकास 
चित्र गूगल से साभार