शनिवार, मार्च 13, 2010

धूप ढलने से पहले मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा


स्कूल- कॉलेज की परीक्षायें प्रारम्भ हो चुकी हैं । हर घर में अनुशासन पर्व चल रहा है । सब कुछ नियमित समय पर हो रहा है ,बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ,खाना-पीना ,सोना-जागना । टी.वी. देखने ,घूमने –फिरने ,गपशप और सोने का का समय घट गया है , पढ़ने का समय बढ़  गया है । बच्चे भी मोबाइल पर आजकल सिर्फ पढ़ने लिखने की ही बातें कर रहे हैं । माता –पिता यथासम्भव उनका खयाल रख रहे हैं । वे देख रहे  है बच्चों ने समय पर पौष्टिक भोजन लिया  या नहीं , उनकी नीन्द पूरी हुई या नहीं आदि आदि । अपनी हिदायतों के साथ वे उनकी पढ़ाई के लिये उचित वातावरण की व्यवस्था  कर रहे हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रहे हैं ।
लेकिन युवाओं की एक अलग दुनिया है । वे खुद नहीं जानते कल उनके लिये क्या लेकर आने वाला हैं । वे क्या बनेंगे , कहाँ सेटल होंगे उन्हे कुछ नहीं पता । अभी मंज़िल बहुत दूर है और उस तक पहुँचने के लिये उन्हे बहुत संघर्ष करना है । वे करें भी तो क्या , बचपन से उनके मन में यह बात डाल दी जाती है कि उन्हे एक दिन बड़ा आदमी बनना है । वे अपने माता- पिता की आँखों में विश्वास और उम्मीदें एक साथ देखते हैं  और उसे पूरा करने के लिये जी- जान लगा देते हैं । हालाँकि वे जानते हैं जैसे जैसे उम्र बढ़ती जायेगी ,समस्यायें भी बढ़ती जायेंगी । हर दौर की अपनी कुछ मुश्किलें होती हैं । फिर भी , सपने तो सपने हैं कुछ उनकी आँखों में हैं , कुछ उनके माता-पिता की ।
ऐसे ही अपने कॉलेज के दिनों में जब मेरे इम्तहान चल रहे थे एक सुबह माँ मेरे लिये चाय बनाकर लाई , तो इस कविता ने मन में जन्म लिया था  । बरसों बाद आज अपने घर में भी वही दृश्य देखा । बिटिया परीक्षा देने गई है और मैं इस  कविता के माध्यम से आप लोगों के साथ  बाँट रहा हूँ अपनी  भावनायें ....  
  
 धूप ढलने से पहले

ज़िन्दगी के अन्धे कुयें से
वक़्त उलीचते हुए
हाथों के छाले बन जाते हैं
आनेवाले दिन

सुबह सुबह
दरवाज़ा खटखटाती है धूप
नींद की किताब का पन्ना मोड़कर
मिचमिचाती आँखों से
अतीत को साफ करता हूँ  
बिछाता हूँ धूप के लिये
समस्याओं की चटाई
याद दिलाती है धूप
भविष्य की ओर जाने वाली बस
बस छूटने ही वाली है

उम्र की रस्सियों से बन्धी
परम्पराओं की गठरी लादते हुए
मुझे उष्मा से भर देता है
धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य

धूप को  भी उम्मीद है
उसके ढलने से पूर्व
मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा ।

                        शरद कोकास 
(चित्र गूगल से साभार )
    

40 टिप्‍पणियां:

  1. उम्मीद ही हो है जो आसानी से रख सकते है....बढ़िया भावपूर्ण कविता...लाखों लोगो के दिल की बात...यही सच है...धन्यवाद शरद जी

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  2. ''धूप को भी उम्मीद ;की उसके ढलने से पहले मै बड़ा आदमी बन जाऊँगा ''......शरद जी ! आप कविता मे शिल्प का इतना सुंदर
    विनन्यास करते हैं ....विम्बो का दर्पण की तरह साफ़ होना ....और कथ्य की संवेदना मोह लेती है .एक बाए फिर हार्दिक बधाई .

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  3. बिछाता हूँ धूप के लिये
    समस्याओं की चटाई
    याद दिलाती है धूप
    भविष्य की ओर जाने वाली बस
    बस छूटने ही वाली है

    उम्र की रस्सियों से बन्धी
    परम्पराओं की गठरी लादते हुए
    मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य
    ांद्भुत बस एक ही शब्द। शुभकामनायें

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  4. बहुत बढ़िया कोकास भईया ।

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  5. सामयिक और सराहनीय रचना ।
    बड़े होने का मतलब हो गया है , पैसे की अधिकता ,समय की कमी ।
    आपने मेरे ब्लाग पर आकर मेरा मार्गदर्शन किया ,उसके लिये आभार

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  6. बिछाता हूँ धूप के लिये
    समस्याओं की चटाई
    और फिर
    धूप को भी उम्मीद है
    उसके ढलने से पूर्व
    मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा ।
    सार्थक प्रतीको से लैस रचना
    सुन्दर अत्यंत भावपूर्ण

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  7. श्रेष्‍ठ रचना। बधाई। घर पर बच्‍चे अब नहीं है तो इस अनुशासन पर्व को हम कहीं पीछे छोड़ आए हैं। अब तो केवल यादें ही शेष हैं।

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  8. उम्र की रस्सियों से बन्धी
    परम्पराओं की गठरी लादते हुए
    मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य

    ....behad prabhaavashaalee abhivyakti !!!

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  9. उम्मीदें भी पूरी होने की आरज़ू में काफी जद्दोजहद करती हैं. है ना?

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  10. समय गोल चक्कर में घूमता रहता है.
    अतीत वर्तमान भी कभी बन जाता है..आज भी वही रस्साकशी है.
    अगर बड़ा बनने के लिए सहूलियतें ज्यादा है तो भीड़ भी बहुत है.
    आशा है ,धूप ढलने से बहुत पहले हर युवा का सपना पूरा hoga.

    [आप की बिटिया हर इम्तिहान में बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो और हमेशा आगे रहे.उसके लिए मेरी शुभकामनाएं हैं .]

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  11. आग्रह भाव लिये बेहतरीन कविता ।
    आभार...!

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  12. जिदगी के अंधे कुएं से उलीचते हुए वक्त !!!
    बहुत सुंदर विम्ब है !अदृश्य को दृश्यमान
    करती हुई कविता अद्भुत है ! तमाम सपने
    चिंता ,घबराहट की सहज अभिव्यक्ति !
    बधाई स्वीकारें !

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  13. शरद जी बहुत उम्दा लिखा है।
    धूप को भी उम्मीद है
    उसके ढलने से पूर्व
    मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा ।

    इस उम्मीद एक लौ जो उत्साह जगाए रखती है।

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  14. बेहतरीन शरद भाई .....

    ज़िंदगी की जद्दोजहद ... सब की आँखों में सपने .... सब कुछ ........ और आप की कविता का तो जवाब नहीं ...

    धूप को भी उम्मीद है
    उस के ढलने से पूर्व
    मैं बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...

    लाजवाब !

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  15. शरद जी मेरे पास यक़ीनन इस रचना की प्रशंशा के लिए उपयुक्त शब्द नहीं हैं...एक बार पढ़ कर बार बार पढ़ रहा हूँ और आपकी कलम को सलाम कर रहा हूँ...बहुत ही प्रभाव शाली रचना...मेरी बधाई स्वीकारें...
    नीरज

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  16. उम्र की रस्सियों से बन्धी
    परम्पराओं की गठरी लादते हुए
    मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य


    धूप को भी उम्मीद है
    उसके ढलने से पूर्व
    मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा ।
    aapki is kavita me gahrai aur sachchai ki jhalak hai jo samjhne ki jaroort hai hame .ise to pathya pustak me dena chahiye .......umda

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  17. इस बड़ेपन को भी समझना होगा जो आम अर्थों में एक बेहतर नौकरी तक सीमित नही है…

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  18. बिछाता हूँ धूप के लिये
    समस्याओं की चटाई
    ....................
    धूप को भी उम्मीद है, mujhe vishwaas hai ki aap bade aadmi banenge

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  19. धूप को भी उम्मीद है
    उसके ढलने से पूर्व
    मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा ।

    बस इसी उम्मीद के सहारे बड़ा आदमी बना जाता है।
    बहुत सुन्दर रचना, शरद जी।

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  20. सामयिक और सराहनीय रचना ।
    बड़े होने का मतलब हो गया है , पैसे की अधिकता ,समय की कमी ।

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  21. मेरा बेटा सृजन भी टेन्थ बोर्ड के इम्तिहान दे रहा है...

    कविता ने अपने पढ़ाई के दिनों की याद दिला दी...

    लेकिन इस पोस्ट का यूएसपी है साथ लगी कुछ बड़े लोगों की तस्वीर...

    जिन्होंने मां-बाप के सपनों को पूरा किया...

    सच में प्रेरणादायक तस्वीर है...

    जय हिंद...

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  22. धूप को भी उम्मीद है
    उसके ढलने से पूर्व
    मैं बड़ा आदमी बन जाउंगा ।
    ओर उम्मीद ही जीवन है, बहुत सुंदर लिखा आप ने, धन्यवाद

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  23. उम्र की रस्सियों से बन्धी
    परम्पराओं की गठरी लादते हुए
    मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य..
    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ! बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! सुन्दर प्रस्तुती!

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  24. 'धूप को भी उम्मीद है उसके ढलने से पूर्व मै बड़ा आदमी बन जाऊँगा '

    -बहुत दूर तक जा रही हैं यह पंक्तियाँ बस उसी उम्मीद की तरह!!

    -बधाई इस उम्दा रचना के लिए.

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  25. सुन्दर है। शानदार है। उम्मीद पूरी हो!

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  26. उम्र की रस्सियों से बन्धी
    परम्पराओं की गठरी लादते हुए
    मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य
    बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ...
    जीवन का फलसफा बयां किया है आपने.

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  27. धूप को भी उम्मीद है ...
    और इसी उम्मीद पर दुनिया कायम है ...

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  28. उम्र की रस्सियों से बन्धी
    परम्पराओं की गठरी लादते हुए
    मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य

    गहरी सोच-बढिया कविता

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  29. मुझे उष्मा से भर देता है
    धूप की आँखो में उमड़ता वात्सल्य
    धूप के ढलने तक वो बड़ा आदमी बने ना बने...धूप की उष्मा तो वैसे ही रहेगी..
    बहुत सुन्दर..

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  30. hamesha ki tarah iss baar bhi ek sunda, arthvaan kavita k liye badhai.

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  31. ज़िन्दगी के अन्धे कुयें से
    वक़्त उलीचते हुए
    हाथों के छाले बन जाते हैं
    आनेवाले दिन
    ...........इन शब्दों में बड़ी बात..सुन्दर भावाभिव्यक्ति...उम्दा रचना.

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  32. हैरान हूँ इस पोस्ट को पढ़ कर दो बार पढ़ ली फिर भी ये नहीं समझ पा रही हूँ की क्या कहूँ??????बस इतना ही कह सकती हूँ की काश धूप ढ़लने से पहले हर कोई उसकी सोची हुई मंजिल तक पहुँच सके और हाँ बिटिया रानी को शुभकामनाएं
    आभार

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