पहल 104 में प्रकाशित शरद कोकास की लम्बी
कविता 'देह' पर राजेश जोशी की चिठ्ठी
प्रिय शरद ,
बहुत दिन बाद तुम्हारी लम्बी कविता देह को पढ़ा
है । हालांकि एक पाठ कविता के लिये और खासतोर से लम्बी कविता के लिये नाकाफ़ी है ।
गहन आवेगात्मक लय के साथ चलती यह एक महत्वपूर्ण कविता है । इसमें देह की विकासगाथा
भी है और देह के इतिहास का आख्यान भी । एक साथ कई स्तरों पर चलती कविता की कई
परतें हैं । पृथ्वी सहित अनेक ग्रहों की देह के आकार लेने की गाथा से शुरू कविता
धरती पर जीवन के आकार लेने की गाथा में प्रवेश करती है और अमीबा के निराकार से
आकार तक की यात्रा की तरफ जाती है । कहना न होगा कि तुम एक साथ विज्ञान , इतिहास ,दर्शन और क्लासिकल साहित्य की स्मृतियों को
एक दूसरे से बहुत खूबसूरती से गूंथ देते हो। यह रास्ते बड़ी कविता की ओर जाते हैं ।
इसमें किस तरह हमारे पुरखों की , कई बार हमारे विस्मृत
पुरखों की परछाइयाँ उनकी सन्ततियों तक जाती हैं , इसका भी
बहुत खूबसूरती से तुमने इस्तेमाल किया है । यह सच है कि मनुष्य की देह सचमुच एक
पहेली है । जितना उसे ज़्यादा से ज़्यादा जानने की कोशिश होती रही है उतनी ही वह
अबूझ भी बनी ही रहती है ।
"एक देह की जिम्मेदारी में शामिल होती हैं / अन्य देहों की ज़रूरतें ।"
यह एक महत्वपूर्ण विचार भी है और पंक्ति भी ।
तुम इतिहास में मनुष्य देह के साथ किये गये अनेक अत्याचारों की स्मृतियों के साथ
ही तात्कालिक इतिहास की यूनीयन कार्बाइड , नरोड़ा पाटिया ,
आदि को भी समेट लेते हो । इस तरह एक बड़ा वृत्त यह कविता बनाती है ।
इसमें उन भविष्यवाणियों की ओर भी संकेत है जो खतरों की तरह मंडरा रही हैं । देह के
मशीनों में बदलने के प्रयास का भी जिक्र यहाँ है । कहना न होगा कि बिना एक सही और
प्रगतिशील विचारधारा के इतना बड़ा वृत्त खींचना और उनके बीच के सम्बंधों के महीन
तागों को छूना संभव नहीं था । उपलब्धि , खतरे और भयावह
सच्चाइयों के साथ कहीं लगता है कि एक बड़े स्वप्न को भी इसमें जगह मिलनी चाहिये थी
। लेकिन एक महागाथा की तरह यह कविता बहुत सारे मनों को बेचैन करेगी ।
शुभकामनाओं के साथ
तुम्हारा
राजेश जोशी
14.10.16
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फिर से पूरा पत्र पोस्ट कर दिया है धन्यवाद
हटाएंThanks for sharing valuable information ! Gift Online Delivery
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