मंगलवार, मई 24, 2011

चलती हुई रेल में कवितायें

इन दिनों यात्राओं का मौसम है । शादी ब्याह , घूमना फिरना ... । मैं भी पिछले दिनों रेल में यात्राएँ करता रहा । याद आती रहीँ अपनी कुछ पुरानी कवितायें ....


चलती रेल में कविता –एक

चलती हुई रेल में
खिड़कियों के शीशे चढ़े हों
कैद हो रोशनी डिब्बे के भीतर
उस पार हो गहरा अंधेरा
काँच पर उभरते है
अपने ही धूमिल अक्स

बस इसी समय
मन के शीशे पर
उभरता है कोई चेहरा
जो मौजूद नहीं होता
चलती हुई रेल में ।

रेल में कविता –दो

सो जायें जब सब के सब
गहरी नींद में
मैं जागती हूँ उनींदी
नींद में ढ़कलते  सिर के लिये
कोई कांधा नहीं होता
कोई नहीं होता
जिससे कह सकूँ
मन की तमाम बातें

दिल की धड़कनों की
चलती हुई रेल में
साथ चलते हो तुम
लिये अपनी बातों का पिटारा ।

चलती हुई रेल में कविता –तीन
 
ठीक इसी वक्त
घड़ी ने तीन बजायें हैं
ठीक इसी वक्त
उचटी है मेरी नींद
ठीक इसी वक्त
चलती हुई रेल
ठिठकी होगी
यादों के किसी
छोटे से स्टेशन पर ।

                        शरद कोकास

23 टिप्‍पणियां:

  1. ठीक इसी वक्त
    चलती हुई रेल
    ठिठकी होगी
    यादों के किसी
    छोटे से स्टेशन
    वाह बेहतरीन भावाव्यक्ति।

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  2. बस इसी समय
    मन के शीशे पर
    उभरता है कोई चेहरा
    जो मौजूद नहीं होता
    चलती हुई रेल में ।

    ख़ूबसूरत कविताएँ

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  3. बहुत सुन्दर कवितायें.

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  4. सीधे कवि हृदय से निकली कवितायेँ । बहुत सुन्दर ।

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  5. पहली कविता को जैसा मैने समझा....

    जीवन भी रेल के समान है जहां चढ़े होते हैं अज्ञानता के शीशे। रोशनी भीतर होती है जिसे बाहर ढूंढते रहते हैं। बाहर मिलता है घोर अंधेरा। जीवन के अंतिम पड़ाव में या बीच राह में भी यकबयक अज्ञानता के शीशे में कहीं दिख जाता है अपना ही अक्स। बस इसी समय हम ढूंढते हैं रहनुमा / गॉड फादर जो नहीं रहता साथ...चलती ट्रेन में।
    ...देवेन्द्र पाण्डेय।

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  6. वैवाहिक वर्षगांठ के लिए कौन सा स्टेशन निर्धारित है?
    ..ढेर सारी शुभकामनाएँ।
    ..देवेन्द्र पाण्डेय।

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  7. तीनों की तीनों रेलाभिव्यक्ति बड़ी सुन्दर हैं।

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  8. `ठीक इसी वक्त
    घड़ी ने तीन बजायें हैं
    ठीक इसी वक्त
    उचटी है मेरी नींद
    ठीक इसी वक्त
    चलती हुई रेल
    ठिठकी होगी
    यादों के किसी
    छोटे से स्टेशन पर ।`--याद रह जाने वाली प्यारी सी कविता, शरद भाई

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  9. ठीक इसी वक्त
    याद आया अपना
    रेल का सफ़र
    ठीक इसी वक्त
    लौट आए सपनों से
    अपनी धरातल पर!

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  10. ठीक इसी वक्त
    चलती हुई रेल
    ठिठकी होगी
    यादों के किसी
    छोटे से स्टेशन पर ।
    ...बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
    वैवाहिक वर्षगांठ की ढेर सारी शुभकामनाएँ।

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  11. ठीक इसी वक्त
    चलती हुई रेल
    ठिठकी होगी
    यादों के किसी
    छोटे से स्टेशन पर ।

    वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

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  12. @देवेन्द्र भाई , वैवाहिक जीवन में आनेवाली हर वर्षगाँठ भी इस यात्रा के स्टेशन की तरह है । शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद ।
    @ प्रवीण भाई , यह रेलाभिव्यक्ति शब्द आपकी नई खोज है , अच्छा लगा ।

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  13. किसी अज़ीज सफर सी लगी ये रचनाएँ

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  14. मेरी पसंद: कविता नंबर - ३

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  15. रेल में रेलमपेल नहीं कविता भी होती है.

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  16. कविता बडी कमीनी चीज होती है शरद भाई, वह रेल तो छोडिए कभी-कभी टॉयलेट में भी सवार हो जाती है। बहरहाल, कविताएं अच्‍छी हैं।
    ---------
    मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
    बदल दीजिए प्रेम की परिभाषा।

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  17. Fine poemsSharad bhai lekin janab teesree kavita mujhey sarvottam lagi ,shayad is liye ki isi anubhav sehajaro baar guzara hoo/sasneh
    dr.bhoopendra
    rew
    mp

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  18. "ठीक इसी वक्त ठिठकी होगी कोई ट्रेन यादों के किसी छोटे स्टेशन पर "'.भाव सागर में डुबोती गोता लगवाती रागात्मक रचनाएं .देवेन्द्र पांड्य जी की व्याख्या भी सुन्दर है वैसे कविता तो अनुभूत होती है .व्याख्या की मोहताज़ नहीं रहती है .फिर भी .

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  19. शरद जी !आप अकसर आते थे हस्ता मुस्काता चेहरा लेते गाहे बगाहे हमारे ब्लॉग पर हमारा बर्फानी एटी -ट्युड देख लौट गए .सच बात यह है तब हमें इल्म न था -भाई बाहर निकलो अपने छोटे से ब्लॉग कि चौहद्दी से ।
    सबका अपना पाथेय पंथ एकाकी है ,
    अब होश हुआ जब इने गिने दिन बाकी है .आज आपके रेल पाठ पर आये बहुत शिद्दत से एहसास हुआ बहुत कुछ मिस किया है आपके यहाँ न आके .नवाजिश !शुक्रिया !

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  20. ठीक इसी वक्त
    चलती हुई रेल
    ठिठकी होगी
    यादों के किसी
    छोटे से स्टेशन पर ...

    Very appealing lines !...Lovin' it !

    .

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  21. टू इन वन कविता भी और यात्रा बृतांत भी

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