चैत्र नवरात्रि के इस कविता उत्सव में हमेशा की तरह आप सभी पाठकों का सहयोग मिला । मैं और सिद्धेश्वर सिंह आप सभी के आभारी हैं ।
आज अंतिम दिन प्रस्तुत कर रहे हैं दिव्या माथुर की यह कविता जो हमे उपलब्ध करवाई है आप सभी के सुपरिचित दीपक मशाल ने । इस कविता का मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद भी दीपक ने किया है ।
कवयित्री का परिचय - ब्रिटेन में हिन्दी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों में से एक दिव्या माथुर जी की शिक्षा दीक्षा दिल्ली में ही हुई । अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स), नई दिल्ली में १५ वर्ष तक चिकित्सा सचिव की तरह अपनी सेवायें उन्होंने दीं. उनके बारे में यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने स्वयं को नेत्रहीनों की मदद के लिए समर्पित कर दिया. संवेदनाओं की कुशल चितेरी कवयित्री एवं कहानीकार दिव्या जी लन्दन में भी नेत्रहीनों को स्वावलंबी बनाने वाली एक संस्था की प्रभारी निदेशक हैं.
नृत्य
आज अंतिम दिन प्रस्तुत कर रहे हैं दिव्या माथुर की यह कविता जो हमे उपलब्ध करवाई है आप सभी के सुपरिचित दीपक मशाल ने । इस कविता का मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद भी दीपक ने किया है ।
कवयित्री का परिचय - ब्रिटेन में हिन्दी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों में से एक दिव्या माथुर जी की शिक्षा दीक्षा दिल्ली में ही हुई । अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स), नई दिल्ली में १५ वर्ष तक चिकित्सा सचिव की तरह अपनी सेवायें उन्होंने दीं. उनके बारे में यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने स्वयं को नेत्रहीनों की मदद के लिए समर्पित कर दिया. संवेदनाओं की कुशल चितेरी कवयित्री एवं कहानीकार दिव्या जी लन्दन में भी नेत्रहीनों को स्वावलंबी बनाने वाली एक संस्था की प्रभारी निदेशक हैं.
अंग्रेज़ी में परास्नातक तथा पत्रकारिता की डिप्लोमाधारी दिव्या जी का हिन्दी और अंग्रेज़ी की कविता तथा कहानी के लेखन पर समान अधिकार है. आप नेत्र विज्ञान के लिए एक संक्षिप्त लिपि की भी जन्मदात्री हैं.
हाल ही में एन आर आई संस्था द्वारा प्रदत्त भारत सम्मान, भारतीय हाई कमीशन द्वारा यू के का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक सम्मान हरिवंशराय बच्चन अवार्ड एवं भारत में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त लेखन सम्मान दिव्या जी की साहित्यिक उपलब्धियों का सर्वथा उपयुक्त मूल्यांकन करते हैं. इनके अलावा लन्दन की जानी मानी समाजसेवी तथा साहित्यकार दिव्या जी को अंतर्राष्ट्रीय कविता पुस्तकालय द्वारा कविताई में अप्रतिम उपलब्धि अवार्ड भी दिया गया.
अनुवादक का परिचय - युवा कवि एवं कथाकार दीपक मशाल कहानी, लघुकथा और व्यंग्य को भी अपनी मूल विधाओं में शामिल करने की कोशिश में निरंतर प्रयासरत हैं . दीपक विज्ञान के छात्र हैं और कैंसर पर क्वीन'स विश्वविद्यालय, बेलफास्ट(यू के) में शोध-संलग्न हैं ।“ अनुभूतियाँ' शीर्षक से उनका एक कविता संग्रह २०१० में प्रकाशित है तथा शीघ्र ही एक लघुकथा और एक कविता-संग्रह आने वाला है.इसके अलावा दीपक मशाल एक चर्चित ब्लॉगर भी है । उनका ब्लॉग “ मसि कागद “ आपने देखा ही होगा ।
लीजिये आज पढ़िये दिव्या माथुर की यह कविता -
दिव्या माथुर |
नृत्य
रेत के
लघु टीले को करने रोशन
उतरी झिलमिलाती चांदनी
साठ किरणों से निर्मित
उसका लहंगा
जिसके साथ ही सिली उसकी चोली
और नीले, लाल
हरे, पीले जैसे
अनगिन चमकीले रंगों के हुल्लड़ में
डूबी हुई सी उसकी चुनरी
दीपक मशाल |
हय्य क्या पतली कमर !
कैसी मिश्री सी आवाज़ !
ज्यों छुआ था उसने ज़मीं को
आकर करीब
इस अदा से देखा
कि नृत्य कर उठा रेत कण-कण ।
कवयित्री - दिव्या माथुर
अनुवादक - दीपक मशाल
इस बार अर्चना चावजी ने यह बीड़ा उठाया है कि वे नवरात्रि पर्व पर प्रकाशित सभी कविताओं को अपने ब्लॉग पर अपने स्वर में प्रस्तुत करेंगी । हम उनके आभारी हैं । सुनिये उनके ब्लॉग " मेरे मन की " पर नवरत्रि उत्सव के तीसरे दिन प्रकशित ममांग दाई की कविता । अन्य छह कविताओं को भी समय समय पर आप उनके ब्लॉग में सुन सकेंगे । पुन: आप सभी के प्रति आभार के साथ - शरद कोकास
आदरणीय शरद जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
हय्य क्या पतली कमर !
कैसी मिश्री सी आवाज़ !
......बढ़िया प्रस्तुति
कविता अच्छी लगीं. कवियत्री, दिव्या माथुर जी एवं शरद जी आपको बधाई
ख़ूबसूरत अनुवाद के लिए दीपक मशाल जी का आभार
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत कविता का उतना ही सुन्दर अनुवाद. श्री दीपक जी और सम्मानिया दिव्या जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ. सादर !
जवाब देंहटाएंलघु टीले की जगह कुछ और सहज हो पाता तो और मज़ा आता…लेकिन कुल मिलाकर रवां अनुवाद…बधाई…लेकिन कविता तो कुछ ख़ास नहीं ही लगी। कवियित्री का सुदीर्घ परिचय शायद ज़्यादा की उम्मीद जगाता था। फिर भी आप दोनों को इस आयोजन के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अनुवाद और कविता के भाव्।
जवाब देंहटाएंदिव्या जी कि कविताओं में निहित गहरे भाव की मैं प्रसंशक हूँ.और यह कविता भी उससे जुदा नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
रेत का कण कण नृत्य करता हुआ औऱ चमकता हुआ धूप के छन्नों से। बहुत सुन्दर कविता व अनुवाद।
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसुरत....
जवाब देंहटाएं@ अशोक जी,
जवाब देंहटाएंपहले सोचा कि रेत का टिब्बा करुँ... लेकिन वह भी जँचा नहीं.. कोई और शब्द सूझा नहीं. आप सही कह रहे हैं, आदरणीया दिव्या जी की अन्य कवितायें इससे कई-कई गुणा बेहतर हैं लेकिन जिस वक़्त उनसे संपर्क किया तब हालात कुछ ऐसे बने कि बाकी कवितायें मिल ना सकीं.. मजबूरी यह थी कि नवरात्रि से पहले-पहले कविता लगाना था. :(
दिव्या जी की तरफ से आप सबका शुक्रिया अदा करता हूँ..
अनुवाद भावमय है, अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंदिव्या जी का लिखा अंग्रेजी वर्ज़न भी साथ उअपलब्ध होता, तो आनन्द आता और अधिक.
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंदिव्या माथुर जी के बारे में जानना और उनकी कविता से हो कर गुज़रना सुखद लगा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
दिव्या जी की कविता बहुत भाई । किरण का मानवी करण क्या बात है ।
जवाब देंहटाएंachhi kavitaye.....
जवाब देंहटाएंachhi kavitaye.....
जवाब देंहटाएंbahut sundar.....dono ko badhai...
जवाब देंहटाएंbahut badiya....
जवाब देंहटाएंsharad ji! bahut din se nayee blogpost nahi dikhi??
कविता पढी । इनकी कवितायें पत्रिकाओं में पढी है। मसि कागज पर क्लिक किया तो उस ब्लाग पर लिखा था कि सृजनगाथा पर पढने को मिलेगा। वहां पर तीन लघुकथायें पढी जो दीपका मशाल जी की थी । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंशरद जी को बहुत बहुत बधाई :-)
जवाब देंहटाएंभाव भूमि अनुवाद कि मूल पाठ से कमतर न रही होगी .शरद जी आभार ,दिग्गजा दिगाज्जों से रु -बा -रु करवाया आपने .
जवाब देंहटाएंहेप्पी बर्थडे शरद सर! दिव्यजी की कविता ठीक लगी.अनुवादक दीपक खुद बहुत टेलेंटेड व्यक्ति हैं. अर्चना जी मधुर गाती है जा कर सुनती हूँ वैसे यही क्यों नही लगा दिया पॉडकास्ट को?दोनों जगह रहता.क्या हर्ज था उसमे.फिर भी तिकड़ी के काम की मुक्त कंठ से सराहना करती हूँ.बधाई.
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