रानी जयचंद्रन मलयालम और अंग्रेजी की युवा कवि हैं जो केरल के एक छोटे से कस्बे वर्कला में रहती हैं। समकालीन भारतीय अंग्रेजी कविता में यह एक नया और अलग - सा स्वर है जिसे हिन्दी कविता के पाठकों और प्रेमियों से अवश्य परिचित कराया जाना चाहिए। रानी जयचंद्रन की इस कविता - पुस्तक में कुल 22 कवितायें संकलित हैं जो कवितायें समकालीन भारतीय अंग्रेजी कविता के उस रूप - स्वरूप से परिचित कराती हैं जो अपनी जड़ों से गहराई तक संबद्ध है. ये कवितायें अपने निकट की प्रकृति तथा परिवेश से मात्र रागात्मकता और रुमानियत ही ग्रहण नही करतीं बल्कि जीवन - जगत की चुनौतियों व संघर्षों से टकराने के लिए भरपूर ऊर्जा और उत्साह भी हासिल करती दिखाई देती हैं और ऐसा करते हुए वे न तो सपाटबयानी पर उतरती नजर आती हैं और न ही कोई वक्तव्य या सूत्रवाक्य बन कर रह जाती हैं. लयात्मकता , सीधी सरल भाषा , आत्मपरक कहन शैली और लाउड हो जाने से बचने का सचेत आत्म - अनुशासन इस संग्रह की कविताओं की कुछ अन्य खूबियां हैं जो इसे रेखांकित करने योग्य बनाती हैं. प्रस्तुत हैं उनकी यह कविता जिसका अनुवाद किया है सिद्धेश्वर सिंह ने :
अनंत जीवन
रानी जयचंद्रन |
घाटी की ढलानों पर
ऐश्वर्य के मुकुट की तरह
फिर खिला है कुरिन्जी*
बारह बरस के बाद.
नर्म - नाजुक फुहार और
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी- नीले रंग के फूल की चपल आँखें.
खूब गहरे तक धँसकर
पंखुड़ियों को चूमती हैं सूरज की किरणें
और उनमें भर देती हैं सुर्ख रंगत की सजावट .
चंद्रमा की रोशनी से नहाई हुई रात में
फैलता ही जा रहा है
ढलानों पर धीर धरी धरती का खिंचाव.
प्रेम की ऊष्मा से छलछलाती हवा
फुसफुसाहटों में करती आ रही है कोई बात
ठगी ठिठकी गंभीर हो ठहर जाती है
देर तक इस जगह.
और शान्त तैरता हुआ बादल
गाने लगता है
एक अकेले दिवस का
सिद्धेश्वर सिंह |
कभी न खत्म होने वाला गौरवगान .
बारह बरस के बाद.
फिर खिला है कुरिन्जी
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी - नीले रंग के फूल की चपल आँखें.
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कविता - रानी जयचंद्रन
अनुवाद - सिद्धेश्वर सिंह
डोल रही हैं
जवाब देंहटाएंजामुनी - नीले रंग के फूल की चपल आँखें.
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बारह वर्ष में एक बार खिलने वाले कुरिंजी के साथ प्रकृति के सौंदर्य को बयान करती गुनगुनाती धूप- सी कविता !
जवाब देंहटाएंप्रेम की अति उत्तम अभिव्यक्ति…………बेहद उम्दा लेखन्।
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurti se tarasha hai bhawon ko...wah.
जवाब देंहटाएंदुर्लभ फूल के बहाने दुर्लभ प्रेम की अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबारह बरस के बाद.
जवाब देंहटाएंफिर खिला है कुरिन्जी
और एक माह बाद आप ....:)
बहुत ही सुन्दर अनुवाद।
जवाब देंहटाएंप्रयास किया है-- पॉडकास्ट बनाने का, सिद्धेश्वर जी को भेजा है, अनुमति की प्रतिक्षा में---
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंप्रकृति की अनुपम छटा का मनमोहक वर्णन । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबारह बरस के बाद.
जवाब देंहटाएंफिर खिला है कुरिन्जी
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी - नीले रंग के फूल की चपल आँखें....
बहुत सुंदर कविता और उसका अनुवाद..
सिद्धेश्वर जी और शरद जी को बधाई!!!
बहुत ही सुन्दर अनुवाद.....शरद जी को बधाई!!!
जवाब देंहटाएंरानी जयचन्द्रन की की सुन्दर कविता का बहुत सही अनुवाद डॉ. सिद्धेश्वर सिंहं द्वारा किया गया है!
जवाब देंहटाएं--
नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!
रानी जयचन्द्रन की सुन्दर कविता का बहुत सही अनुवाद डॉ. सिद्धेश्वर सिंहं द्वारा किया गया है!
जवाब देंहटाएं--
नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!
रानी जयचंद्रन की कविता हमारे तक पहुंचाने के लिए सिद्धेश्वर जी ने काफ़ी मेहनत की है, जाहिर होता है।
जवाब देंहटाएंआभार
जितनी सुएन्दर कविता, उतना ही सुन्दर अनुवाद. बधाई रानी और सिद्धेश्वर जी, दोनों को. आपका आभार.
जवाब देंहटाएंमंद - मंथर हवा के सानिध्य में
जवाब देंहटाएंडोल रही हैं
जामुनी - नीले रंग के फूल की चपल आँखें.
ख़ूबसूरत कविता का सुन्दर अनुवाद...
सुंदर नैसर्गिक छटा...प्रकृति का मानवीकरण...सहज संप्रेष्य-प्रभावी तथा प्रवहमान होने के साथ ही बेहतर तादात्म्य स्थापित करती रचना....अखंडित लय, दृष्य-बिंब....प्रभवोत्पादक रचना...
जवाब देंहटाएंलगता ही नहीं कि यह रचना अनूदित है। स्रोतभाषा और लक्ष्यभाषा की दूरी ख़त्म सी मालूम होती है______सफल अनुवाद...नमन !
उत्तम अभिव्यक्ति…
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna .
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