देखना चाहता हूँ इस एक कविता से कितने अर्थ निकालते हैं आप ?????
सितारे
अन्धेरी रातों में
दिशा ज्ञान के लिये
सितारों का मोहताज़ होना
अब ज़रूरी नहीं
चमकते सितारे
रोशनी का भ्रम लिये
सत्ता के आलोक में टिमटिमाते
एक दूसरे का सहारा लेकर
अपने अपने स्थान पर
संतुलन बनाने के फेर में हैं
हर सितारा
अपने ही प्रकाश से
आलोकित होने का दम्भ लिये
उनकी मुठ्ठी मे बन्द
सूरज की उपस्थिति से बेखबर है ।
शरद कोकास
सूरज चन्द मुट्ठियों में बन्द होगा तो यह दम्भ स्वाभाविक ही है, ऐसे में दिशा ज्ञान के लिये दिग्भ्रमित करते इन सितारों पर ही तो आश्रित होना पड़ता है.
जवाब देंहटाएंरचना का अनूठा और बिम्बात्मक अन्दाज लाजवाब
बन्द करों में सूरज-भ्रम,
जवाब देंहटाएंखुले हाथ हैं, रीता श्रम।
आदरणीय शरद कोकास जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
जवाब देंहटाएंabhi aa ke aapko samjhata hun bhiya
जवाब देंहटाएंमेरी समझ से यह कविता सर्वहारा वर्ग के लिए लिखी गई है जिसके अनुसार यह वर्ग अब अपना मार्ग खुद ही तलाश करना सीख चुका है। इसे मार्क्स या लेनिन की आवश्यकता नहीं है।
जवाब देंहटाएंजो इस सर्वहारा वर्ग की नुमाइंदगी करते हैं वे अपनी ही रोशनी बुलंद करने व सतुंलन बनाने में लगे हैं।
हर सितारा अपने ही दंभ में आलोकित है। जिस श्रमिक को वह अपनी मुट्ठी में कैद समझता है , नहीं जानता कि वह स्वयम् एक दहकता हुआ सूरज है।
....शेष आप समझायें तो ज्ञान चक्षु खुलें।
बहुत ही सुन्दर बुलन्द इरादों के साथ एक बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंइतनी बेहतरीन कविता के कोई अर्थ कैसे निकाल सकता है…………सिर्फ़ इतना ही कह सकती हूँ कि झूठे अभिमान मे इंसान ये भूल जाता है कि उसका अस्तित्व क्या है और कितना है …………इंसान का मै उस पर इतना हावी होता है कि उसे अपने से आगे और कुछ दिखाई ही नही देता जबकि उससे आगे जहाँ और भी है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना! अर्थ तो सब अपने अपने स्तर के अनुशार निकाल ही लेते हैं!
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब लिखा है...कुछ तो समझ में आया .पर आपके समझाने का इंतज़ार करते हैं :)
जवाब देंहटाएंसही लिखा है आपने. आज तो हालात यही हैं... कहां किसी को दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करने की भी फ़ुर्सत है! स्व:केंद्रित व्यक्तित्व आज इसी तरह का व्यवाहार करते हैं...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत है ! अर्थ तो सभी अपने-अपने हिसाब से लगाते हैं, पर मैं इस मामले में किसी हद तक देवेन्द्र जी से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंशरद जी, हमने तो एक ही अर्थ निकाला है...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना है.
ऐसी गूढ़ कविता के तो अर्थ ही नहीं निकाल पाते, आप जो कहें, सहर्ष मान लेंगे हम.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना है.
जवाब देंहटाएंअपना वोट सितारों के साथ नहीं हमें सूरज बाँधने वाली मुट्ठियों के साथ जानिये !
जवाब देंहटाएंवाह!!! यमक अलंकार!!! नई कविता में अलंकार के दर्शन...आप भी पहेलियां बूझने लगे?
जवाब देंहटाएंसच है, कई बार शोषित जान ही नहीं पाते, कि उनका शोषण हो रहा है.गर्वोन्मत्त स्थिति में होता ही है ऐसा.
मध्यमवर्ग का प्रतिनिधि सितारा ताकत के मुट्ठियों में बंद है, प्रकाश रूपी सुख छलावा है, सुख के आलोक के लिये वर्गसंघर्ष ना करते हुए किसी की मुट्ठी की गुलामी करते मनुष्य को पता ही नहीं है कि गुलामी की बेडियों को तोड़ते ही सारा आलोक उसका है। ऐसे परबसिये सितारों का दिशानुकरण क्यूं करें. ....
जवाब देंहटाएंमेरी समझ में यही अर्थ निकल रहे हैं वैसे कविता में मैं पैदल हूं भईया.
वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर है ,
जवाब देंहटाएंआप बता दीजिये सर
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमार्ग दिखने वाले आत्ममुग्ध अभिमानी स्वार्थी सितारों पर भरोसा ना कर मुट्ठी में बंद सूरज पर भरोसा होना चाहिए ...जिस दिन मुट्ठी खुल गयी , सूरज की रौशनी के आगे तमाम सितारों की रौशनी मद्धम हो जाने वाली हैं ...सितारों को चेतावनी है या खुद पर अन्यतम भरोसा !
जवाब देंहटाएंअपनी मंद बुद्धि पर इतना ही भरोसा है ...पूरा समझने के लिए आपकी व्याख्या पढनी होगी !
सुन्दर भाव लिये कविता |
जवाब देंहटाएंआशा
.. मुझे तो आपकी एक रचना में कुछ आध्यात्मिक पुट नज़र आ रहा है कि इंसान आज अपने अन्दर छुपे उस परमात्मा से बेखबर होकर कुछ भी कर गुजरने को आमदा है.. ..जबकि यह तो उसका मात्र भ्रम है... .... और भ्रम एक न एक दिन टूटता जरुर है .....
जवाब देंहटाएंहर सितारा
जवाब देंहटाएंअपने ही प्रकाश से
आलोकित होने का दम्भ लिये
उनकी मुठ्ठी मे बन्द
सूरज की उपस्थिति से बेखबर है ।
बहुत ही भावपूर्ण कविता ..... सुंदर प्रस्तुति.
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आप की इस कविता में कई भाव निहित है पर मेरी जो समझ में आता है वो यह है कि आदमी को किस्मत पर भरोसा ना करके मेहनत से अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए...वैसे है बहुत बढ़िया कविता....बधाई
जवाब देंहटाएंलाजवाब, बेमिसाल,सराहनीय और क्या कहूँ .......
जवाब देंहटाएंशरद जी ,
जवाब देंहटाएंइतनी कठिन कविता लिखेंगे तो हम लोग कैसे समझेंगे भाई
आप की कविता तो multimeaning कविता हो गई
आप ने किन अर्थों में लिखा है अब उसे जानने की प्रतीक्षा है
जहां तक मैं समझी ,,,मुझे अपना ये शेर याद आता है
ज़ुल्म सदियों का उस की ख़ामोशी
ले के परचम उठी बग़ावत का
छोटी सी कविता कितनी गहराई और अनेको अर्थ समेटे...
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