मंगलवार, जनवरी 11, 2011

सितारों का मोहताज़ होना अब ज़रूरी नहीं

 देखना चाहता हूँ इस एक कविता से कितने अर्थ निकालते हैं आप ?????

सितारे

अन्धेरी रातों में
दिशा ज्ञान के लिये
सितारों का मोहताज़ होना
अब ज़रूरी नहीं

चमकते सितारे
रोशनी का भ्रम लिये
सत्ता के आलोक में टिमटिमाते
एक दूसरे का सहारा लेकर
अपने अपने स्थान पर
संतुलन बनाने के फेर में हैं

हर सितारा
अपने ही प्रकाश से
आलोकित होने का दम्भ लिये
उनकी मुठ्ठी मे बन्द
सूरज की उपस्थिति से बेखबर है ।

                        शरद कोकास  

28 टिप्‍पणियां:

  1. सूरज चन्द मुट्ठियों में बन्द होगा तो यह दम्भ स्वाभाविक ही है, ऐसे में दिशा ज्ञान के लिये दिग्भ्रमित करते इन सितारों पर ही तो आश्रित होना पड़ता है.
    रचना का अनूठा और बिम्बात्मक अन्दाज लाजवाब

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  2. बन्द करों में सूरज-भ्रम,
    खुले हाथ हैं, रीता श्रम।

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  3. आदरणीय शरद कोकास जी
    नमस्कार !
    लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...

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  4. कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  5. मेरी समझ से यह कविता सर्वहारा वर्ग के लिए लिखी गई है जिसके अनुसार यह वर्ग अब अपना मार्ग खुद ही तलाश करना सीख चुका है। इसे मार्क्स या लेनिन की आवश्यकता नहीं है।

    जो इस सर्वहारा वर्ग की नुमाइंदगी करते हैं वे अपनी ही रोशनी बुलंद करने व सतुंलन बनाने में लगे हैं।

    हर सितारा अपने ही दंभ में आलोकित है। जिस श्रमिक को वह अपनी मुट्ठी में कैद समझता है , नहीं जानता कि वह स्वयम् एक दहकता हुआ सूरज है।
    ....शेष आप समझायें तो ज्ञान चक्षु खुलें।

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  6. बहुत ही सुन्‍दर बुलन्‍द इरादों के साथ एक बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  7. इतनी बेहतरीन कविता के कोई अर्थ कैसे निकाल सकता है…………सिर्फ़ इतना ही कह सकती हूँ कि झूठे अभिमान मे इंसान ये भूल जाता है कि उसका अस्तित्व क्या है और कितना है …………इंसान का मै उस पर इतना हावी होता है कि उसे अपने से आगे और कुछ दिखाई ही नही देता जबकि उससे आगे जहाँ और भी है।

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  8. बहुत सुन्दर रचना! अर्थ तो सब अपने अपने स्तर के अनुशार निकाल ही लेते हैं!

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  9. क्या गज़ब लिखा है...कुछ तो समझ में आया .पर आपके समझाने का इंतज़ार करते हैं :)

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  10. सही लिखा है आपने. आज तो हालात यही हैं... कहां किसी को दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करने की भी फ़ुर्सत है! स्व:केंद्रित व्यक्तित्व आज इसी तरह का व्यवाहार करते हैं...

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  11. खूबसूरत है ! अर्थ तो सभी अपने-अपने हिसाब से लगाते हैं, पर मैं इस मामले में किसी हद तक देवेन्द्र जी से सहमत हूँ.

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  12. शरद जी, हमने तो एक ही अर्थ निकाला है...
    बहुत उम्दा रचना है.

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  13. ऐसी गूढ़ कविता के तो अर्थ ही नहीं निकाल पाते, आप जो कहें, सहर्ष मान लेंगे हम.

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  14. अपना वोट सितारों के साथ नहीं हमें सूरज बाँधने वाली मुट्ठियों के साथ जानिये !

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  15. वाह!!! यमक अलंकार!!! नई कविता में अलंकार के दर्शन...आप भी पहेलियां बूझने लगे?
    सच है, कई बार शोषित जान ही नहीं पाते, कि उनका शोषण हो रहा है.गर्वोन्मत्त स्थिति में होता ही है ऐसा.

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  16. मध्‍यमवर्ग का प्रतिनिधि सितारा ताकत के मुट्ठियों में बंद है, प्रकाश रूपी सुख छलावा है, सुख के आलोक के लिये वर्गसंघर्ष ना करते हुए किसी की मुट्ठी की गुलामी करते मनुष्‍य को पता ही नहीं है कि गुलामी की बेडियों को तोड़ते ही सारा आलोक उसका है। ऐसे परबसिये सितारों का दिशानुकरण क्‍यूं करें. ....

    मेरी समझ में यही अर्थ निकल रहे हैं वैसे कविता में मैं पैदल हूं भईया.

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  17. वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर है ,
    आप बता दीजिये सर

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  18. मार्ग दिखने वाले आत्ममुग्ध अभिमानी स्वार्थी सितारों पर भरोसा ना कर मुट्ठी में बंद सूरज पर भरोसा होना चाहिए ...जिस दिन मुट्ठी खुल गयी , सूरज की रौशनी के आगे तमाम सितारों की रौशनी मद्धम हो जाने वाली हैं ...सितारों को चेतावनी है या खुद पर अन्यतम भरोसा !
    अपनी मंद बुद्धि पर इतना ही भरोसा है ...पूरा समझने के लिए आपकी व्याख्या पढनी होगी !

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  19. सुन्दर भाव लिये कविता |
    आशा

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  20. .. मुझे तो आपकी एक रचना में कुछ आध्यात्मिक पुट नज़र आ रहा है कि इंसान आज अपने अन्दर छुपे उस परमात्मा से बेखबर होकर कुछ भी कर गुजरने को आमदा है.. ..जबकि यह तो उसका मात्र भ्रम है... .... और भ्रम एक न एक दिन टूटता जरुर है .....

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  21. हर सितारा
    अपने ही प्रकाश से
    आलोकित होने का दम्भ लिये
    उनकी मुठ्ठी मे बन्द
    सूरज की उपस्थिति से बेखबर है ।
    बहुत ही भावपूर्ण कविता ..... सुंदर प्रस्तुति.
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  22. आप की इस कविता में कई भाव निहित है पर मेरी जो समझ में आता है वो यह है कि आदमी को किस्मत पर भरोसा ना करके मेहनत से अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए...वैसे है बहुत बढ़िया कविता....बधाई

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  23. लाजवाब, बेमिसाल,सराहनीय और क्या कहूँ .......

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  24. शरद जी ,
    इतनी कठिन कविता लिखेंगे तो हम लोग कैसे समझेंगे भाई
    आप की कविता तो multimeaning कविता हो गई
    आप ने किन अर्थों में लिखा है अब उसे जानने की प्रतीक्षा है
    जहां तक मैं समझी ,,,मुझे अपना ये शेर याद आता है

    ज़ुल्म सदियों का उस की ख़ामोशी
    ले के परचम उठी बग़ावत का

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  25. छोटी सी कविता कितनी गहराई और अनेको अर्थ समेटे...

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